मैं मछुआरा  नहीं
जो  नायलोन   से  बने  जाल  से
मछली  पकड़   लू
मैं   कवि   हू
शब्दों  के  बने  जाल से
भाव  पकड़ता   हू  ॥
मैं  राम   नहीं
जो अपने  बाण   से
समुद्र   सूखा   दू
मैं  कवि हू
नश्तर की  तरह  चुभने  वाला
व्यंग  बाण  चलाता   हू ॥
मैं  माली  नहीं
जो  फूलों  को  तोड़कर
एक  माला   बना   लू
मैं  कवि  हू
हर  दिल  में  नित्य
हास्य -कमल  खिलाता   हू ॥

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