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रविवार, 18 जुलाई 2010

एक मजदूर की भूख

उसके भी
दो आँख /दो कान /एक नाक है
थोड़े अलग है तो उसके हाथ ॥
मेरा हाथ उठाता है कलम
मगर
उसके हाथ उठाते है कुदाल
और इसी कुदाल से
लिख लेता है वह
अनजाने में ही
देश प्रेम की गाथा ॥

मेरी माँ कहती है
भूख लगे तो खा लो
नहीं तो भूख मर जाती है ॥


जब भारत बंद/ बिहार बंद होता है
उसकी भूख मर जाती है
कई बार /बार -बार ॥

ओ ...बंद कराने वाले नेताओ
आर्थिक नाकेबंदी करने वाले नक्सलवादियों
क्या आपकी भी भूख कभी मरी है ?


फिर एक दिन
मैं भी स्वं रो पड़ा
जब उसने कहा
थोड़ी सी सीमेंट दे दो साहब
उसका घोल बना कर पी लूँगा
फिर ख़त्म हो जायेगी
सब दिन के लिए मेरी भूख ॥

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