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शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

दाल में कुछ काला है ...

जो खोजता हू ,वह मिलता नहीं
जो फटा है ,वह सिलता नहीं
रिश्तों की काज में , दोस्ती का बटन
लगा लेता हू ,तो खोलता नहीं ॥

मंहगाई बढ़ गयी ,तो घटती नहीं
इश्क लग गयी ,तो छूटती नहीं
ये कैसी दुनियां हो चली भाई
मछली जल बिन तड़पती नहीं ॥

अँधेरा अब रौशनी से डरता नहीं
खा -खा कर भी , पेट अब भरता नहीं
जमा खोरी की आदत जबसे लगी है
गरीबी देख दिल अब दहलता नहीं ॥

इज्ज़त लुटने की खबर से
दिल अब घबराता नहीं
साठ की उम्र में शादी कर लूँगा
क्योकि आदमी अब सठियाता नहीं ॥

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