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गुरुवार, 30 जून 2011

फूल तो नादान है


हवा जब गुस्सा होती है
सीटी बजाती है
बादल जब गुस्सा होती है
बिजली चमकाती है
नदी जब गुस्साती है
बाढ़ लाती है //


हवा, बादल और नदियों ने
सीख लिया है दुनियादारी
फूल तो नादान हैं
उन्होंने सिर्फ मुस्कुराना सीखा है //

बुधवार, 29 जून 2011

सब्जी वाली हसीना


मूली से उजली देह तुम्हारी
होट हैं मानो, जैसे चुकंदर
काली मिर्च से काले केश
मुस्काती तुम अंदर ही अंदर //
बोली तेरी लाल मिरचाई
तेरा आलू सा मुस्काना
फूलगोभी सी हंसी तुम्हारी
सांसे तेरी हरी पुदीना //

मंगलवार, 28 जून 2011

माँ की परिभाषा


पिता को परिभाषित करना कुछ हद तक आसान है ,परन्तु माँ को किसी परिभाषा में बंधना उतना ही कठिन है ,जितना समुद्र के पानी को किसी वर्तन में ज़मा करना ....


माँ ....
तुम हो ,वात्सल्य का एक खिलौना
तेरे सामने हम हो जाते बौना //


माँ ...
तुम हो ,प्यार की मीठी बांसुरी
नहीं डराती अब ,शक्ति आसुरी //

माँ ....
तुम हो ,स्नेह की एक गरम अंगीठी
मुझे बता बचपन की बातें , मीठी //

माँ....
तुम हो नदी ,सिंचती जीवन की बगिया
जी लूंगा ,बना के तेरी यादों का तकिया //

रविवार, 26 जून 2011

जब भींगी तेरी ओढ़नी


बादल देख झूमा उपवन
झूम रहे मोर -मोरनी
और ज़वां लगने लगी तुम
जब भींगी तेरी ओढ़नी //

भर गए सारे ताल-तलैया
मेढकी गाने लगी रागिनी
आने लगी महक यौवन की
जब नभ में छाई चांदनी //

काले का भ्रम फैलाती
काली लम्बी तेरी मेखला
तेरी अँखियाँ जिधर कौंधती
बरस पड़ती उधर दामिनी //

गुरुवार, 23 जून 2011

कलम अब तलवार नहीं है


हर जगह आग है, शोला है, कही प्यार नहीं है
सकून दे सके आपको,ऐसी कोई वयार नहीं है //

कितना संभल कर चलेंगे आप,अब गुल में
हर पेड़ अब खार है,कोई कचनार नहीं है //


हंसी मिलती है,अब सिर्फ तिजारत की बातों में
रिश्तों का महल बनाने, अब कोई तैयार नहीं है //

अश्क पोछना होगा अब आपको,अपने ही रुमाल से
पोछ दे आपका अश्क,अब ऐसा कोई फनकार नहीं है //

माँ ! लिखना भूल गई है अब मेरी कलम
शायद ,बेटे को अब माँ की दरकार नहीं है //

जी भर लूटो ,खाओ , इस हिन्दुस्तान मेरे दोस्त !!
मेरी कलम,अब कलम है ,कोई तलवार नहीं है //

बुधवार, 22 जून 2011

बीज का आत्मकथ्य


पिताजी ! मैं एक
छोटा सा ही सही
वृक्ष बन गया हूँ
उस बीज से
जिसे आपने रोपा था
मेरी माँ के कोख में //

बन सकता था मैं
एक विशाल वृक्ष
कसैले पानी पी-पीकर
मगर ! पिताजी
मेरे सारथी तो आप थे //

यकीन मानिए
मुझमे कसैले फल नहीं
आपने आम रोपा था न
मैं बबूल कैसे होता
मैं उऋण नहीं हो सकता //

मंगलवार, 14 जून 2011

एक बेटी की कसक

माँ....
लोग तुम्हें बुढ़िया कहते हैं
अब, जब निकलने लगे हैं
मुझमें यौवन के पंख
तब आईने में देखकर
आश्वस्त हो जाती हूँ
कि.....
लाखों में एक होगी
मेरी माँ//
गन्दी ज़वान पर
लोग ताला क्यों नहीं लागते //

रविवार, 5 जून 2011

क्षणिकाएँ

नाव डूबी, यमुना में
दिल मेरा डूबा
तेरे अंगना में //

मोर ,मोरनी को ले भगा
देखकर मौका तगड़ा
दोनों बालिग़ थे
अब किस बात का झगडा //

इस देश को लुटा
देश के रखवालों ने
मुझको लुटा, मेरे सालों ने //

मेरे बारे में