followers

रविवार, 27 जून 2010

गीत -३(कामदेव ललच रहा है )


क्या गीत लिखू
मेरे मीत
आँचल सरक रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥


आकुल मन
व्याकुल है
भींगे उर
भींगे बदन
मौसम बदल रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥

मौन निमंत्रण तेरे आंखों की
गर्माहट तेरे सांसों की
अंग -अंग सिहर रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥


आओ , चलें
खेलें रति -क्रिया
संगम हो जाए तन -तन का
सावन बरस रहा है
कामदेव ललच रहा है ॥

12 टिप्‍पणियां:

  1. यौन रतिरागात्मकता का उत्थान

    जवाब देंहटाएं
  2. मौन निमंत्रण तेरे आंखों की, गर्माहट तेरे सांसों की
    अंग -अंग सिहर रहा है..........संगम हो जाए तन -तन का
    सावन बरस रहा है..........वाह वाह , मद मस्त कविता !

    जवाब देंहटाएं
  3. मौन निमंत्रण तेरे आंखों की
    गर्माहट तेरे सांसों की

    kay baat .. tasbeer ke saath sabodo ka sayunjhan dekhte hi bantaa hai ..

    जवाब देंहटाएं
  4. भाव तो अच्छे हैं व्याकरण ?

    जवाब देंहटाएं

मेरे बारे में