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गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

रेत और रिश्ते


घंटों लगे थे
रेत का भी घर बनाने में
हवा का एक झोंका आया
टूट गया रेत का घर //

एक बिजली सी कौंधी
मेरे दिल में
रिश्ते बनाने में भी लगते है सालों
मगर टूट जाते है
शीशे की तरह
मात्र कुछ मीठे बोल न बोलने से //

रिश्ते और रेत का अर्थ
मैं समझ गया हूँ ..//

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

नया साल कब आयेगा

मेरे लिए नया साल आयेगा ..जब ...
१-माँ बाप से मिलने उनके बच्चे घर आजाये
२-ठंढ से बचने को हर देह पर वस्त्र हो
३-तलाक़शुदा महिलाए फिर मुस्कुरा उठे
४-डर भय समाप्त हो जाए //
अब कविता पढ़े ..और बताये कौन सा बिम्ब अच्छा लगा //
**************************************************************************************

नया साल आयेगा
मेरे लिए जब ...
-- छोटे से घोसले में रह रहे
चिडियों के जोड़े के बच्चे
वापस मिलने लौट आयेगे //
-- ठुठे वृक्षों की शाखाओं को
ठंढ से बचाने
नई कपोले उन पर लड़ जायेगे //
--वे फुल फिर मुस्कुरा उठेगे
उन भौरों के आने से
जो उन्हें छोड़ कर चले गए थे //
--मेरे घर के छत पर रखे
चावल के दाने चुगने
फिर से आने लगेगी चिड़ियाँ //

मंहगाई काबू में है

खूब खाओ -पीओ
मंहगाई काबू में है //

गर्मी रजाई में है
प्यार जुदाई में है
आफिस की हर फाईल
उसके बाबू में है
मंहगाई काबू में है //

खटाई इमली में है
मज़ा चमेली में है
चेहरे पर मत जाओ
ताकत उसके बाजू में है
मंहगाई काबू में है //

सोमवार, 27 दिसंबर 2010

मिटटी ,बांस और हम


मिटटी ...
नर्म होती है
जब गीली होती है
पक जाती है वह
जब आग पर
रंग ,रूप आकार नहीं बदलती //

बांस ...
जब कच्चा होता है
जिधर चाहो ,मोड़ दो
पक जाने पर
नहीं मुड़ेगा //

आदमी ...
कब पकेगा
मिटटी की तरह
बांस की तरह
शायद कभी नहीं क्योकि
दिल तो बच्चा है जी //

नया साल आया है


मैं फुल , तू महक
मैं खग ,तू चहक
मैं फाग ,तू रंग
नया साल आया है
नाचो ,गाओ संग -संग //

तू पायल ,मैं खनक
मैं चटनी ,तू नमक
मैं मशाला , तू अंचार
नया साल आया है
कर लो आँखे चार-चार //

रविवार, 26 दिसंबर 2010

किताबें


किताबें
हंसाती है
रुलाती है
गुदगुदाती है//

किताबें
फतबा है
पावंदी है
पुरस्कार है
जेल है //

किताबे
ललकारती है
फुफकारती है
सनसनाती है
आईना दिखाती है //

किताबें
बोझ है नई पीढ़ी पर
ई -किताबे पढ़ते है वे //

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

फर्क

रौशनी के पीछे
भागने का काम है
पतंगों का //

मैं इंसान हूँ , मेरे दोस्त
मुझे चकाचौंध से क्या लेना
मैं तो बना हूँ ....
अँधेरे को उजाले में बदलने के लिए //

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

आभार


मैंने अपनी पहली पोस्ट १९ मई २०१० को की थी ...
मैं ब्लॉग जगत से बिलकुल अनजान था ....
फिर एक दिन पढ़ा ....
चर्चा मंच की श्रीमती वंदना गुप्ता जी ने लिखा था /
आपकी रचना चर्चा मंच की शोभा बनी है /
उसे दिन मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई //
आज मुझे इतनी ख़ुशी हो रही है ....किमैं कह नहीं सकता /
२५० अनुशारनकर्ताकि लम्बी मण्डली हो गई है /
मैं सभी मित्रों /ब्लॉगर के प्रति नतमस्तक हूँ ...
स्नेह बनाए रखे ...../

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

तुम बला की नार हो


तुम बला की नार हो
तुम कच्ची कचनार हो //

उड़ता आँचल देख तुम्हारा
फट गए नभ के बादल
अंखियों से जब तीर चली
हो गए लाखों घायल
परागकणों में तुम ही बसती
भौरों की गुंजार हो
तुम कच्ची कचनार हो //

हाथ मजबूत करने की कला


हाथ मजबूत नहीं होता .....
हाथ मिलाने से
और
दोस्तों की संख्या बढ़ाने से //

हाथ मजबूत नहीं होता
आशा की चिड़िया के पंख सहलाने से
वादों की पेड़ में पानी देने से
और
अशवाशनो के गुब्बारों में हवा भरने से //

हाथ मजबूत होता है मेरे दोस्त !
कुदाल चलाने से
और
कीचड़ में फ़सी बैलगाड़ी को
धक्का देकर बाहर निकालने से //

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

मोतियों की खोज


( कर्म प्रधान है , इसी बात को दर्शाती एक रचना)

मोतियों की चाह में
मैं खड़ा था
समुद्र तट पर
डराती थी मुझे
समुद्र की गर्जना
मैं तो सिर्फ लहरों को गिनता
लहरे आती -जाती
मगर ... मोतियाँ साथ नहीं लाती //

नहीं डरा वह गर्जनाओ से
कूद पड़ा
अथाह जल राशि में
और जब वह निकला
उसकी हथेलियाँ
मोतियों से भरी थीं//

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

२१ वी सदी का फलसफा


ऐसा जीना भी क्या
जीना यारों ....
जब न दे समाज को धोखा
और जिसमे न उठा हो
विवाद का चोखा //



ऐसा पीना भी क्या
पीना यारों
जब न दे यार को गाली
जिसमे न पोरोसी गई हो
शराब -शबाब की थाली //

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

नकाब

सुनो .....
दिखाबा मत करो
मैं ईमानदारी हूँ
बहुत दिनों तक
तुम्हारे घर के अंदर रही
अंकुरण तो दूर
ठीक से रह भी न पाई //

सुनो .....
मुझे के बाहर
दरवाजे पर कही टांग दो
फिर , जी भरकर
घर के अंदर
जो बुझाये - वो करो //

आखिर मेरा
नकाब कब तक पहनोगे .//

मल्टिपल चोइस क्वेश्चन Multiple Choice Question


शुध्ध वातावरण के लिए क्या चाहिए
एक विकल्प चुने
शुध्ध हवा
शुध्ध पानी
शुध्ध धरती
शुध्ध समाज //

फंस गए न आप ?
फिर पुनः एक दूसरा प्रश्न
आप क्या बनना चाहते है
एक अच्छा पिता
एक अच्छा पति /पत्नी
एक अच्छा नागरिक
एक अच्छा सेवक //

फिर फंस गए न आप ?
हा हा हा हा हा
थोडा सोचिये ....
कोई विकल्प अकेला नहीं
सारे विकल्प एक साथ चुनने होंगे //

हिसाब














आंखों में आँखें डालकर बोलना
६२ साल तक तुमने क्या किया
वतन झुलस रहा है , मेरे दोस्त
इसीलिए,अब तुमसे हिसाब मांगते है //


आँख न मिलाई,तो हाथ क्या मिलाओगे
जागी ज़नता को,अब कैसे रुलाओगे
मैं तो ठहरा भिखमंगा, मेरे दोस्त
इसीलिये स्विस बैंक का हिसाब मांगते है //

रविवार, 19 दिसंबर 2010

भेड़ चाल


माहिर होते है
भेड़ और गधे
एक लीक एक चलने में //

सुना है ---
अगर एक भेड़ कुए में गिरा
सब भेड़ उसी में गिरेंगे //

आज ----
कंक्रीट के जंगल में
रहनेवाला मानव
इसी भेडचाल की नक़ल तो कर रहा //

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

गीत -४ महक उठेगा खटिया


छुई -मुई सी है देह तुम्हारी
और फिसलता उर
नारी के यौवन को देख
फिसले मानव ,सुर -असुर //

लहरों में भी तेरा चेहरा
इन्द्रधनुष सा चमके
रातों में भी तेरा चेहरा
जैसे असख्य दामिनी दमके //

मन के आँगन में आओ
सींचो प्रेम की बगिया
आगोश में जब हम -तुम होंगे
महक उठेगा खटिया //

आपके आ आने से


पीली साडी में
आपकी महक उड़ी ऐसी
तितलियों को
सरसों फुल खिलने का धोखा हो गया
जब आ धमकी मधुमखियाँ
तो मौसम का रंग चोखा हो गया //

जब आँचल उड़ाई आपने
तो गुब्बारे यू ही फूलने लगे
कदम जब बढ़ाया आपने
तो उबड़ -खाबड़ ज़मीन समतल हो गया //

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

कल TOMORROW


कल मैं आपका काम कर दूंगा
सुन कर हँसता है "आज"
हा हा हा //

"आज" कहता है
सुबह के साथ जन्म लेता हूँ
शाम को मर जाता हूँ
मैं "कल" को नहीं जानता //

अरे भाई ...
आज की सुनिए
कल की छोडिये //

सरदार



नन्हा सम्राट देख रहा है
नन्ही आंखें फाड़े
सरदार जी अब कैसे लेगें
विपक्ष को हाथों आड़े //

क्षणिकाए


::::::::::::(१)::::::::::::::
जाम
पहले तूफ़ान से डरा करता था
अब तूफ़ान को थाम लेता हूँ
पहले मैं परेशान रहता था
अब मेहरबानी का जाम लेता हूँ //

:::::::::::::(२)::::::::::::
भाषा
पढ़ती है आपकी आँखे
लवों की किताब
जहाँ आप हो
वहाँ प्यार बेहिसाब //

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

भारत बदल गया है


सब कुछ पलट गया है
भारत बदल गया है //

घर- घर में है मुमताज
मगर महल ताज नहीं है
घर -घर में है वीणा
मगर साज नहीं है //

घर -घर से उठती है
रोज तलाक़ की चीखें
देवियों के देश में
देवियों पर रोज उठती बाहें //

भगवत- भजन और कीर्तन की
खुल रही है धोती
जनता खोज रही दाना -दाना
नेता चुग रहे मोती//

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

२१ वी सदी का भारत

२१ वी सदी का भारत
घोटालों का एक वटवृक्ष है
दुनियाँ वालों ....
हमने ही सिखाया था आपको राम राज
अब सिखाते है आपको घोटाला राज
क्योकि मैं विश्व -गुरु हूँ //

आओ ,
इस वृक्ष का फल चखो
मेरा दावा है
बिना इस फल को चखे
वैतरणी पार करना मुश्किल है //

फल का निर्यात नहीं करेगा भारत
पर्यटन को आईये
फल भी खाइए
बीज भी साथ ले जाइए //

मित्र वार्तालाप

//................(१)....................//
पहले तुम ईद के चाँद थे
फेसबुक ज्वाइन करने के बाद
मेरे दोस्त ... अब तुम
गूलर के फुल हो गए हो //

//...............(२)......................//

गर्ल फ्रेंड से शादी के पहले
तुम कटे -कटे से रहते थे
शादी के बाद
अब मरे -मरे से रहते हो //

//................(३)...............//

अब आपसे बाते क्या
हम आपके दीदार को भी तरसें
आँचल का प्यार मिले तो कैसे
टाईट जींस भाभी ने जो पहने //

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

बदरंग हुआ इन्द्रधनुष


पक्षियों का बन्द था कलरव
फूलों की गायब थी मुस्कान
और मस्त नहीं थे भवरे //
मैंने पूछा ..... क्या हुआ
सभी ने एकस्वर से कहा
हमने मिलकर
बनाया था रंगीला इन्द्रधनुष
मगर ......
कुछ नेताओ और पूंजीपतिओ के
हाथ लग गई
घोटाले की रबर
बेरंग कर दिया इन्धनुष //

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

चिराग


( मित्रों , कहते है बूंद -बूंद से सागर भरता है ठीक उसी तरह थोड़ी थोड़ी दुसरे की मदद करके एक आदमी, अंत तक बहुत बड़ा दानी /परोपकारी बन सकता है । इसी भावना को दर्शाती एक छोटी सी कविता । क्या मैं सही हूँ ? )

एक चिराग हूँ
छोटा सा //
हर दूसरे को
जलाते जा रहा हूँ //

मेरी ऊर्जा घट नहीं रही
यकीन मानिए
अंत तक
मैं बन जाउंगा
एक विशाल अग्नि पुंज //

// मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //

डोक्टर हूँ ...
बीमारी को नब्ज से नहीं
रिपोर्ट से पकड़ता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //

वकील हूँ ....
दिमागी इल्म लगाता हूँ
सच को काँटा चुभाता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //

पत्रकार हूँ ....
सबसे ईमानदार हूँ
सब सच ही लिखता हूँ
मैं थोडा तिरछा देखता हूँ //

फूल हूँ ....
बेशक गंधहीन
मगर भवरे फंसा लेता हूँ
मैं भी थोडा तिरछा देखता हूँ //

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

मेरे घर में आपका स्वागत है


....................(१)...................
आइये ना ! मेरे घर
मेरे घर में आपका स्वागत है
आइये ना ....
मेरे ड्राइंग रूम में
सोफे पे बैठिये ना
पूरे नौ इंच धस जायेगे आप
सरकारी मुलाजिम हूँ ना
कल ही किसी ने दिया है
कोई देने लगा गिफ्ट में
जाने -अनजाने
कुछ ....
जायज़ -नाजायज़ करा ही लिया होगा //

---------------(२)......................

अरे....
क्या खोज रही है
आपकी आँखे दीवालों पर

गणेश जी और हनुमान जी का कैलेण्डर
अरे भाई साहब !!
कितने पुराने खयालात के है आप
कबकी हटा डाली उन्हें
मकबूल फ़िदा हुसैन की
लगाईं है पेंटिंग
बेचारे हुसैन साहब को
क़तर जाना पडा
अपना देश छोड़कर
हिन्दू देवी -देवताओं की
नंगी पेंटिंग जो बना डाली थी उन्होनें
खैर .....
मुझे तो अच्छा लगा
उनकी अधनंगी औरतों की पेंटिंग
मेरे घर की दीवालों पर
ऐसी ही पेंटिंग मिलेगी //
( लम्बी कविता है ...शेष भाग कल )
--------(३)-----------
फूलों का गुलदस्ता
खोज रहे है आप ....
मैंने उन्हें हटा कर रखा है
ऐश ट्रे ....
अपने दोस्तों के सिगरेटो की राख
जमा करने के लिए //
फुल तो बाहर
गमले में ....
शायद कई दिनों से मैंने
उन पौधों में पानी भी नहीं दिया //

-------(४)।-----------
आइये न
मेरे बच्चो से मिलिए
आपके चरण न छुए
तो उनकी तरफ से मैं ही
माफ़ी मांगता हूँ //
मैंने ही
उन्हें ऐसा करने नहीं सिखाया
गुड मॉर्निंग करेंगे आपको
आपको भी अच्छा लगेगा
जाति का ब्रह्मिन हूँ
बच्चों का उपनयन संस्कार भी किया था
अच्चा खर्चा भी हुआ
मगर ....
बच्चो ने कहा
it does not suits on my personality
और उतार कर फेंक दिया //
रामायण / महाभारत /कुरान
की कहानियां नहीं सुनना चाहते


(अधूरा )

रविवार, 5 दिसंबर 2010

गुजारिश


नज़र से नज़र को मिलायो इस कदर
कि किसी की नज़र ना लगे
मेरे खयालों में आओ इस कदर
कि किसी को खबर ना लगे //

ए खुदा ! सब पर रहम कर इस कदर
कि कोई इंसान बीमार ना लगे
दोस्त ! खुदा से कुछ भी मांगो इस कदर
कि उसे भी ज़हर ना लगे //

मौन की भाषा


मौन होते है आंसू
मौन होती है आँखे
मौन होती है
दीपक की लौ
मौन होती है
फूलों की खुशबू
मौन होती है
इन्द्रधनुष
मौन होती है कलम
और उसके शब्द
मगर क्रांति लाते है //

आईये ....
हम भी सीखे
मौन की विचित्र भाषा //

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

प्रेम की चिड़िया


मेरे पास थी एक चिड़िया
उछलती थी
कूदती थी
फांदती थी
उड़ते रहती थी
कभी माँ के आँचल में
कभी पिताजी के कंधे पर
कभी भाभी की साडी से
जाती थी लिपट
कभी दोस्तों के यहाँ
कभी पड़ोसियों के यहाँ
कभी चुग लेती थी
खेतों से मटर और चना //

काम /काम /काम
काम से फुर्सत नहीं था मुझे
मैंने उसे खाना नहीं दिया
ना ही पानी
उसके पंख टूट गए
वह मर गई //

जानते है
वह चिड़िया कौन थी
वह थी ....
मेरे दिल में रहनेवाली
प्रेम की चिड़िया //

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

गर्माहट

एपार्टमेंट की छत पर
मिली थी थोड़ी सी जगह
गुनगुनी धूप सकने को
तरंगित होने लगी यादे //

अब तो सपनों जैसा ही है
पिताजी की गोद में बैठकर
अलाव सेकना //

मैं नहीं दे पाया
अपने बच्चो को वैसा प्यार
जैसा मैंने पाया अपने पिता से
इन गगनचुम्बी ईमारतों में रहकर //

हम खोते जा रहे है
रिश्तों में गर्माहट देने की कला
जो हमारी विरासत थी //

हम एक आदमी को आदमी कब कहेंगे

बचपन में .....
मुर्गा बनाते थे गुरु जी
कुछ बड़ा हुआ
फिर कहने लगे
तुम गदहे हो
उल्लू के पट्ठे हो //
खेलता -कूदता -उछलता
तो माँ कहती
तुम बन्दर हो क्या //

मेरे ऑफिस में एक कर्मचारी है
बिलकुल सीधा -साधा
लोग उसे गाय कहते है
एक दूसरा कर्मचारी
बिना लिए कुछ करता नहीं
लोग उसे कुत्ता कहते है //
किसी के पक्ष में न बोलो
तो वह कहता है
तुम आदमी हो या पैजामा //

भगवान् सिंह ने कर दी हत्या
हत्यारा कहलाने लगे
अपने ही साथी से बलात्कार कर बैठा
लोग उसे अब बलात्कारी कहते है
अब आगे नहीं लिखूंगा
अब लिखने को बचा भी क्या //

एक प्रश्न का उत्तर चाहिए
मेरे दोस्त ...
हम एक आदमी को आदमी कब कहेंगे ?

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

स्वेटर

जब मैं बच्चा था
पिताजी लाते थे
उन के धागे //
माँ के हाथों बनी
स्वेटर में
होती थी गर्मी //

...नहीं मिलती वह गर्मी
मिल में बने स्वेटर में //
माँ ....
मैं फिर से निकाल लिया हूँ
तुम्हारे हाथो का बुना स्वेटर //

घोसला

ओ !... नभचरों
सारा आकाश है तुम्हारा
मगर ....
तुमने बनाया मात्र
एक घोसला
अपने रहने के लिए //

मैं पेशोपेश में पड़ गया हूँ
क्यों दिग्भ्रमित करते हो मुझे
मुझे संतोष नहीं एक घोसले से
आदमी हूँ एक
पर ,घोसला चाहिए अनेक //

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

मैं आदमी हूँ

सुनो .....
जंगल के जानवरों सुनो
कान खोल कर सुनो
मैं तुम्हारे जैसा
वफादार नहीं //

मैं आदमी हूँ
मौकापरस्त हूँ
ज़रूररत पड़ने पर
तुम्हारे पैर पकडूगा
भुलाबे में मत रहना
अगर स्वार्थ साधने में
ज़रा भी बाधा बने तुम
मरोड़ दूंगा तुम्हारी गर्दन //

भले ही बेशक
तुम मुझे
दधिची की औलाद समझते रहो
जिन्होंने दान कर दी थी अपनी अस्थियाँ //

अंत में ॥
एक राज की बात
मैं जिस थाली में खाता हूँ
उसी में छेद भी करता हूँ
मैं ईश्वर की अनमोल रचना हूँ //

सोमवार, 29 नवंबर 2010

ईश्वर उवाच

कहाँ -कहाँ खोजोगे मुझे
मेरा कोई घर ठिकाना है क्या
व्यर्थ गवांते हो अपनी ऊर्जा //

क्या तुम समझते हो
थोडा सा होम
थोड़ी सी धूप
थोड़ी सी कपूर
घंटी का स्वर
और आरती गाकर
पा लोगे मुझे //

सुनो ॥
मेरे और तुम्हारे बीच की दुरी
गाडियों में लगे
दो पहियों के सामान है
दो समानांतर रेखाओ जैसे //

मगर मैंने पढ़ा है
ठोस ज्यामिति के सिद्धांत कहते है
अंनत पर मिलती है
दो समानांतर रेखाए //

राज की बात बता देता हूँ
अपनी बूढी माँ और बूढ़े बाप का
झुरियो वाला चेहरा देखना
शायद ...
मैं तुम्हें वही मिल जाऊ //

रविवार, 28 नवंबर 2010

मैं राम को वनवास नहीं भेजना चाहता

नहीं नहीं ....
मैं दशरथ नहीं
जो कैकेयी से किये हर वादे
निभाता चलूँगा //

मैं .....
खोखले वादे करता हूँ तुमसे
मुझे
अपने राम को वनवास नहीं भेजना //

क्या हुआ
जो टूट गए
मेरे वादे
अपने दिल को
मोम नहीं
पत्थर बनाओ प्रिय //

शनिवार, 27 नवंबर 2010

मैं अब आवाज दूंगा

कब तक दौड़ता रहूंगा
राह काटने वाली बिल्ली के पीछे
अंधविश्वाशो की किताब
मैं अब जला दूंगा //

क्यों नहीं सूखेगे गरीब के आंसू
गरीबों के खून से बनी सोने की लंका
हनुमान बन
मैं अब जला दूंगा //

खड़े होकर खाली खेत नहीं देखूगा
भूख से सोये बच्चों को पेट भरने के लिए
किसान बन
मैं अब जगा दूंगा //

तेरा पढना भी क्या पढना यारो
जो गर की काम ना आये
बेजुवानो की जुबान बन
मैं अब आवाज दूंगा //

अल्लाह को प्यारा हो गया एक बन्दा

पेड़ रंगे थे
घर सजे थे
और यायायात बन्द
कारण ....
मंत्री जी का है आगमन ॥


उधर चिकित्सा -वाहन से
निकलती दर्द की चीख
दब गई सायरन के आवाज में
बन्दा अल्लाह को प्यारा हो गया ॥

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

चार रोटियाँ

( समाप्त हुए चुनाब में बिहार के लोगो ने जाति से हटकर वोट दिया । प्रस्तुत है एक आम बिहारी की मनोभावना )

अब शान से कहूंगा
मैं बिहारी हूँ
मरोड़ दी है गर्दन मैंने
जाति नाम के दैत्य की ॥
मैं .....
उन मेहनतकशो की संतान हूँ
जिनके बल पर चमका है
मारीशस /फिजी और सूरीनाम ॥

पहले मै लगाता था तेल
अपनी मुछों पर
साथ ही अपनी लाठी पर भी
मगर ...
अब आने लगी है खुशबु
विक्रमशिला और नालंदा के
खंडहरों से ॥

अब नहीं जाउंगा मुंबई
राज ठाकरे की गालियाँ सुनने
नहीं जाउंगा
पंजाब और हरयाणा
सरदार के खेतों में काम करने ॥

अब नहीं डरुंगा
गंगा /गंडक के दियारे में बोई
अपनी फसल काटने में
क्योकि मैं जानता हूँ
अब मिलेगा
हर हाथ को काम
और हर खेत को पानी
तो सबके थाली में होगी
चार रोटियाँ ॥

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

पदचिन्ह

क्यों न हम
भौतिकी का एक प्रयोग करें
लोहे को
चुम्बक से रगड़ो
उसमें आ जाता है
चुम्बकीय गुण ...//

हम भी बन जायेगे
चुम्बक
गर चलेगें
महापुरुषों द्वारा बनाई
पदचिन्हों पर ....//

सोमवार, 15 नवंबर 2010

मैं हवाई जहाज उडाता हूँ

माँ की गोद में
सीखा तुतलाना
पिता की ऊँगली पकड़
सीखा चलाना
गुरूजी से सीखा
'क ' 'ख 'ग' और
भाईचारा /प्रेम /स्नेह /परोपकार की
साईकल चलना ॥

किशोर वय में सीखा
तितलियों के पीछे भागना
फिर सीखा
पीछे से धक्का देना
दूसरों को लंगड़ी मार
आगे निकल जाना ॥

अब .....
रावन /कंस /कौरव के
बनाए रास्ते पर फर्राटे भरता हूँ
और
बेईमानी /फरेब का
हवाई जहाज उड़ाता हूँ ॥

रविवार, 14 नवंबर 2010

मन का दर्द

(यह मेरी पहली रचना है जो मैंने १९८० में लिखी थी ..कैसे हुई इस कविता का जन्म ...नीचे पढेगे ..यह पटना से प्रकाशित लघु पत्रिका "पहुँच " में छपी थी )

किसे सुनाऊ
इसे कब तक सहलाऊ
कोई क्या समझेगा
दूसरे के मन का दर्द
दर्द के कारण
हो गई है मेरी आंखें सर्द ॥

हर समय नहीं होता
यह दर्द
जब सोच का बैलून फटता है
तब उठता है
मन में दर्द ॥

अन्य दर्दो की दवाये भी हैं
पर इसकी कोई दवा नहीं
इसीलिए सोचता हूँ
चिंता छोड़ काम पर लग जाऊ
शायद इसी उपचार से ठीक हो जाए
मन का दर्द ॥

मैं बिहार के नालंदा जिला में अवस्थित जैनों के प्रसिद्द तीर्थ पावापुरी से चार किलोमीटर दूर एक निहायत ही मामूली विद्यलय से मेट्रिक किया ...पुरे स्कुल में सबसे अधिक अंक लाने के वावजूद मेरा नामांकन पटना साईस कालेज में नहीं हुआ ...मगर मेरे एक मित्र का ....जाति गत आरक्षण के आधार पर नामांकन हो गया । बालमन में टीस उठी ...और यह कविता अपने आप बन गई ।

शनिवार, 13 नवंबर 2010

अंधेर नगरी -चौपट राजा

मेरी अक्ल चरने गई है
कुछ समझ में नहीं आता
६२ वर्ष के
गालों पर झुर्रियों वाले
नकली दांतों वाले
और एक सुनहली लाठी के मित्र
मेरे रिटार्ड चाचा जी को
पुनः नौकरी क्यों लगी ॥

और जानते है
मजे की बात
उनका बेटा बेदम है
रोजगार अखबार पढ़ते -पढ़ते ॥


कैसी है ये नीति
कैसे है ये नेता
अंधेर नगरी , चौपट राजा
बजाते रहते
बिना सुर के बाजा॥

अगर सजनी हो दिलदार


( "एक दिन मैं भी विक जाउंगा " कविता पर आये कमेंट्स के बाद मैं अपने निष्कर्ष पर पहुँच गया )

जैसे .......
पर्व -त्यौहार
बना देती है हमारी जिन्दगी
मजेदार

गरम -मशाले
बना देती है सब्जियां
खुशबूदार

खिड़कियाँ
बना देती है कमरे को
हवादार

ठीक वैसे ही
अगर बच्चे हो समझदार
और सजनी हो दिलदार
तो
सजन क्यों न बने
ईमानदार ॥

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

एक दिन मैं भी बिक जाऊँगा

आजिज हूँ
बच्चों के डिमांड के आगे
सबको चाहिए
कुछ न कुछ
शहर जाते ही
हवा लग जाती है उन्हें ॥

पत्नी के ताने
अलग से
क्या करते है आप
सब कहाँ से कहाँ निकल गए
ज़माने से कदम मिलाईये
अपने लिए भी
बँगला -गाडी खरीदिये ॥

आखिर... मन को
कब तक दबाउंगा
एक दिन मैं भी बिक जाऊँगा ॥

राजनीति

राजनीती ...
एक गन्दा खेल !!!

इसकी हर चाल में
नेता बनते
हमेशा
राजा और मंत्री ॥

और ....
जनता
हमेशा बनती है
उनका
हाथी /घोडा और सिपाही॥


क्या जनता
हमेशा बनती रहेगी
उनकी कठपुतली ॥

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

विटामिन की गोलियाँ

आज नहीं रुक रही थी
फाईल पर उनकी कलम
नहीं खोज रही थी
उनकी आंखें
सेल्फ पर रखे
सरकारी नियमो की किताब
पैर में मानों
लग गए हों पहिये ॥

मैंने भी खाई है
विटामिन की गोलियाँ
मगर उसमे नहीं होती
नोटों की गद्दियों जैसी ऊर्जा ॥

बुधवार, 10 नवंबर 2010

हे ..ईश्वर

हे इश्वर
तू जला मन की दीपक
भर दे तू मुझ में
परोपकार का तेल
और दे दे
धैर्य का
एक दिया सलाई .
जब कभी बुझाने लगे
यह दीपक ...
तो फिर से जला सकू ...

थोड़ी सी लज्जा दे
थोडा सा मृदुलभाषी बना
पहना दे मुझे
विन्रमता का गहना
हे ..ईश्वर
मेरे दिल को अपना नीड़ बना ॥

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

प्यार का पहला बीज


शायद तुम्हें याद हो
दौड़ चली थी तुम
चांदनी रेत पर
मानो पैर नहीं
एक जोड़ा पंख हो ॥

उड़ने लगी थी तुम
उस ऊर्जा के बल पर
जो मैंने तुम्हें दी थी
अपनी हथेलियो से
तुम्हारी हथेलियों में
जो मेहँदी के रंग से जवान था ॥

गुजर गई थी सारी रात
कापते लवों को रोकने में
पहली बार
थरथराया था मेरा शरीर
पहली बार पढ़ा था मैंने
किसी के आंखों की भाषा
और शायद
हमदोनो ने बो दिया था
प्यार का पहला बीज ॥

हर दम्पति किसान बने

करना होता है साफ़
खर-पतवार
किसानों को
फसलों के बीच से ॥
देना होता है
नियत समय पर पानी
तब जाकर देती है फसलें
एक अच्छी उपज ॥

मित्रों .....
हर दम्पति को
बनाना होगा किसान
एक स्वस्थ नागरिक की पौध
तैयार करने के लिए ॥

सोमवार, 8 नवंबर 2010

हँसी का फौआरा


फैशन शो में धक्के से
मैडम गिरी उच्चके से
हाई -हिल की टूट गई कील
होने लगा बहुत बैड फिल ॥
गिरा रैम्प पर बैग उछलकर
बोल पड़े सब .....
चलिए संभलकर ॥
हाई हिल की सैंडल पहन
अब ना चलिएगा दुबारा
नहीं तो आप बनती रहेगी
हँसी का फौआरा ॥

शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

डर का नाम शंकर तो नहीं ....


एक अदृश्य चुम्बकीय शक्ति
निकलती है ...
जटाओ से
गले में लिपटे सर्पों से
शरीर में लगे भभूत से
या फिर
कंठ पर रुके हलाहल से ॥

रावण भी पूजता था उन्हें
लंका जाने का निमंत्रण
स्वीकारा उन्होंने/इस शर्त के साथ
बीच में कहीं मत रखना
देवघर के पास
रावण को लघुशंका लग गया
और तब से वे
देवघर वासी हो गए ।

बड़ा दानी है वह
सबसे बड़ा परमार्थी
जो मांगो /वही मिलेगा
मगर सोच समझ कर मांगो
पुत्र मोह की लालच में
सालों पूजा एक भक्त ने
शौच से आते वक़्त
क्रुद्ध हो गया भक्त
लोटा से मार बैठा शिवलिंग पर
लगातार चार पुत्र प्राप्त हुआ
मगर सब के सब रावण ॥

नहीं मांगता वह
सोने का सिक्का /लड्डू /मिठाइयां
खुश हो जाता
बेलपत्र /धथुरा /भांग से ॥

कहते है ....
ब्रम्हा जनक है
विष्णु पालक है
और शंकर संहारकर्ता
अब प्रेम से
या डर से
शंकर सब जगह है

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

जागते रहो

समय ......
एक ऐसी गाडी है
जिसमे ब्रेक नहीं होता
एसिलेटर और क्लच भी नहीं
अपनी गैराज में
बंद नहीं कर सकते आप ॥

हमें चलना है
इसी गाडी के साथ -साथ
कैसे चलेगे हम
सिर्फ ....एक ही उपाय है
जागते रहो
और देखते रहो लक्ष्य को
क्योकि
जो सोया ,सो खोया
जो जागा ,सो पाया ॥

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

शुभ दीपावली

तम के कुपित घोसले में
सजी दीपों की लड़ी
शुभ दीपावली

लक्ष्मी -गणेश का गुंजा नारा
दरिद्रों में मची खलबली
शुभ दीपावली



घर -घर के दरवाजे पर
मुस्कुरा रही रंगोली
शुभ दीपावली

बाग़ में हर फूल खिले है
हर्षित अलि-अलि
शुभ दीपावली

सोमवार, 1 नवंबर 2010

भाषण

भाषण .....
मैं बोलूंगा
आप सुनेगे
मैं मंच पर रहूंगा
आपसे आखें चार जो करनी है ॥

आयोजकों ने दिया है
एक खास विषय
आप सभी आये है
खास विषय पर सुनने ॥

मगर ....
मैं लोकतंत्र का नेता हूँ
कुछ भी बोलूंगा
आपको सुनना होगा
अपनी सरकार की बड़ाई
और विपक्ष की धुलाई
बीच में टोकने का मतलब
मेरी बेईज्जती ॥

नेता का भाषण
हसुआ के विवाह में
खुरपा का गीत ॥

रविवार, 31 अक्तूबर 2010

दिलासा

दिलासा
एक दवा है
शब्दों की दवा
जिसमे कोई केमिकल नहीं ॥

खत्म हो जाती है
कर्मचारियों की हड़ताल
बंद हो जाता है
छात्र -आन्दोलन
क्षण में बदल जाता है
एक बच्चे का रुदन
मुस्कराहट में
जब पिलाई जाती है
दिलासा की एक घुट ॥

रुक जाता है
विधवा विलाप /उग्र -प्रदर्शन
नेता पुनः वोट मांग लेते है
दिलासा की दवा पिला कर
यह दवा
मानो राम -वाण हो ॥

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

भूजा

भूंजा
आग पर
पकाया हुआ अनाज
इसमें नहीं होते
वसा /नमी /प्रोटीन और खनिज
जीभ को तो भाती है
मगर ......
शरीर को ऊर्जा नहीं देती ॥

आज हम
रिश्ते बनाते है
ठीक भुन्जे की तरह
जो दिखने में
आकर्षक तो हैं
मगर उर्जावान नहीं ॥

पगडंडी

आज जिन रास्तों पर
हमने बनाई
चमचमाती सड़के
कभी वह पगडंडी थी
जो हमारे
पुरखों के पदचिन्हों से बना था ॥

काश .....
हम चमका देते
उनके बनाए
सभी पगडंडीयो को
जो इंसान को
इंसानियत की मंदिर तक
पहुंचाते थे ॥

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

बबूल और मैं

मैं एक पौधा था
नर्म कोमल
टहनियाँ थी मेरी
लोग आते
तोड़ लेते मेरी टहनियाँ
बना
लेते दातून
जीना मुश्किल था मेरे लिए

मेरे बगल में
कांटो से भरा एक बबूल भी था
उसने कहा
मर जाओगे जल्द ही
जीना है तो
पैदा कर लो
अपनी टहनियों में कांटे

सच में .....
जब से मैंने कांटों की
चादर ओढ़ी
बड़ा शकून है
मगर क्या
ये अच्छी बात है ?

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

चम्मच

पढ़ा था .....
नहीं निकलती घी
सीधी अंगुली से
कोशिश मैंने भी की
असफल रहा ॥

मैंने भी खाई थी कसम
घी निकालूँगा
बिना अंगुली टेढ़ी किये ही
और फिर
चम्मच ने काम आसान कर दिया ॥

क्या आप से भी घी नहीं निकल रही
हर जगह मिलते है
ऐसे चम्मच
हर काम करने में सक्षम
जैसा काम ,वैसा दाम ॥

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

फूल और मैं

मैंने फूलों को तोड़ा
सुखा दिया रखकर उसे
किताबों के दो पन्नों के बीच
फिर पंखुड़ी -पंखुड़ी अलग कर दी
फिर पैरो से कुचल दिया ॥
मगर ....
खुशबू नहीं मरी ॥

एक मैं हूँ ..दोस्तों
किसी इंसान के
ज़बान से शब्द फिसले क्या
तूफ़ान मचा देता हूँ
तुरंत अपने को
हैवान बना लेता हूँ ॥

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

मैं भी जड़ बनूगा


थकती नहीं
पेड़ की जड़ें
पानी की खोज में
छू ही लेती है
भूमिगत जलस्तर ॥
मरने नहीं देती
अपनी जिजीविषा ॥


बखूबी जानती है वह
हर पत्ते को
हरियाली ही देना है
उसका काम ॥

अब .....
नहीं थकूगा
मैं भी जड़ बनूगा॥

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

मैं माहिर हूँ ....

रात -दिन
लगा लगा रहता हूँ मैं
तोड़ -फोड़ में ॥
कभी बातों को
कभी वादों को
तो .....
कभी किसी का दिल तोड़ता हूँ ॥

कितना सरल होता है ....
तोडना
माँ -पिता के सुनहले सपने
दोस्ती का मजबूत धागा
अग्नि का सात फेरा
और धर्म का घेरा ॥

जोड़ना बड़ा कठिन है
और मैं ....
जोड़ने में नहीं
तोड़ने में माहिर हूँ ॥

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

शरीफ दिखने का पाखण्ड

मैं हूँ ....
अंदर से बदमाश
भले ही शरीफ दिखता हूँ
यों कहिये ...
शरीफ दिखने का पाखण्ड करता हूँ ॥

मेरे राह के रोड़े है
मिट्ठी भर ईमानदार
पुलिस /सरकारी पदाधिकारी और समाज ॥

समाज से तो मैं सलट लूंगा
आज कल लोग
खुद -व -खुद डरते है हमलोग जैसों से
जैसे ही मेरे पास
इन ईमानदारों के
खरीदने लायक पैसा हो जाएगा
कमीनो की दुनिया में
शायद ....
मेरा नाम अव्वल होगा
ऐसा मत सोचिये
मैं अकेला हूँ
मेरे समर्थक बहुत सारे है ॥

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

शाश्वत संगीतकार


प्रभु !!!
आपसे बड़ा संगीतकार कोई नहीं
आपने दिया संगीत
शंख में
कलियों के चटखने में
बांस की बनी फट्ठियो में
और सूखे पत्तों में भी ॥



आपने दिया संगीत
बन्द लवों में
बच्चो की निश्छल खिलखिलाहट में
बेटी की विदाई में
एक माँ का रुदन संगीत ही तो है ॥

मनुष्य ने आपके संगीत को
नहीं समझा प्रभु
अपनी उपलब्धियों पर
ताली तो वह ,बजाता है
पर नहीं जानता
हाथो से बजी ताली को भी
संगीत आपने ही दिया
आप शास्वत संगीतकार है ॥

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

भगवान् से एक प्रश्न

मनुष्य .....
पत्थरो में तिलक लगा
उसे भगवान् बना देता है
फिर बंद कर देता है
छोटे से कमरे में ॥

प्रभु .....
आप तो कण -कण में है
आपने ही सारी सृष्टि रची
छोटे से कमरे में
आपको तकलीफ नहीं होती प्रभु ।

मनुष्य ने ऐसा क्यों किया
कभी आपने सोचा प्रभु

क्या आपको वह अपनी तरह
निष्ठुर समझाता है
क्या मनुष्य सोचता है
अगर आप स्वछन्द घुमे
तो इंसान की तरह
हो जा सकते है आप भी
पत्थर -दिल ॥

मैं भी ना ....

धुम्रपान ....
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कैसे
समझाता हूँ बच्चो को विस्तार से
भय दिखता हूँ
कैंसर का
फिर कुछ ही देर बाद
मैं स्वम धुम्रपान करता हूँ
बच्चो के सामने ही ॥

बच्चो के बैग से
नैतिक शिक्षा की किताब
निकालता हूँ /शौक से
प्रेम /भाईचारा /प्यार /देशभक्ति का
पढ़ाता हूँ पाठ
फिर तुरंत बाद
नाले की समस्या को लेकर
पड़ोसियों से करता हूँ
गाली -गलौज ॥

मैं भी ना ......
भाषण देना/ जितना आसान
निभाना /उतना ही मुश्किल ॥

बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

मैंने माँ को बेच दिया

मुझे क्षमा करना
मेरे खेत
मैंने तुम्हें बेच दिया
एक शराब बनाने वाली कंपनी के हाथों
उसका मालिक कह रहा था
करोडो का राजस्व देगा वह सरकार को
भारतीयों को अब दूध नहीं
मदिरा भाने लगा है

दो ही माँ होती है सबकी
एक जन्म देने वाली
और एक अन्न देने वाली
सच पूछो तो मैंने
तुम्हें नहीं
अपनी माँ को बेचा

रम गए है मेरे बच्चे
शहर के चकाचौध में
गाँव नहीं आना चाहते
कहते है ...
आप तो पके आम हो

काश !!
मेरे बच्चे गाँव लौट पाते

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

अब ताली नहीं, ताल ठोकिये

मंच के भाषणों से
निकलती है लुभावनी बातें
मानो पटाखों से निकलती हो
रंग -बिरंगी रौशनी
शोर मचाती है
कर्णप्रिय लगती है
लोग तालियाँ बजाते हैं ॥

फिर ....
मंच के सारे वादे/कसमे
बुझ जाती है
पटाखों की तरह
बिना अग्निशामक यंत्र के ॥

मित्रो ...
अब समय आ गया है
तालियाँ बजाने की नहीं
ताल ठोकने की ॥

छाता

छाता
उसके काले होने पर
मत जाईये
सोख लेता है
धूप
चुपचाप ॥

वो देखिये
अनजाने में भी
साथ हो लिए
एक छाते के अन्दर ॥

माखन चोर ने भी
बनाया था छाता
गोवर्धन पर्वत का
अपने सखाओ को
बचाने के लिए ॥

हमें भी
बनना चाहिए
एक -दुसरे का छाता ॥

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

सिर्फ एक फूल नहीं है कमल

कीचड़ में खिला
सिर्फ एक फूल ही नहीं है कमल
गुदड़ी में पैदा होते है लाल
इसकी है एक बानगी
देखते ही बनती है
गरीबी में इसकी सादगी ॥

नहीं आता माली उसके पास
घास निकालने
नहीं डालता खाद /दवाई
फिर भी वह खुश है
क्योकि वह
लक्ष्मी जी का चहेता है
उन्होनें उसे दिया है
स्वास्थ्य धन
न कोई चोर चुराएगा
न कोई भाई बांटेगा
इसीलिए तो ......
जी भरकर सोता है रात में
अपने दुश्मन भौरे के साथ ही ॥

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

अजगर

जनसंख्या रूपी अजगर
आप मेरा प्रणाम स्वीकार करे ।
प्रभु .....
आपको क्या भोग लगाऊ
आप न शाकाहारी है /न मांसाहारी
निगल जाते है /किसानों का
हजारों एकड़ भूमि प्रति वर्ष ॥

आपकी विशालता से
मैं ही नहीं /सब भयभीत है
सर्वशक्तिमान नेता भी चुप है
किस पार्टी की शामत आई है
जो आपको मारने का
बनाए चुनाबी मुद्दा ॥

चीन के लोग बदमाश है ,प्रभु
अंकुश लगा / कद छोटा कर रहे है आपका
आप भारत में बेख़ौफ़ रहिये
बड़े दयालु है भारतीय
हर चीज में भगवान् देखते है
काटने वाले सांप को भी
प्रेम से दूध पिलाते है ॥

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

मुझे लेमनचूस नहीं ,चाकलेट चाहिए

बड़े -बुजुर्ग कहते है ...
पहले का ज़माना और था
देखा -देखी नहीं था
लोगों को थोड़े में संतोष था
बच्चे /जवान /बूढ़े सभी
लेमनचूस में मान जाते थे ॥

मगर ...
आज हर कोई
कुछ भी करने को है तैयार
उसे लेमनचूस नहीं
उसके सर पर चढ़ा है
चाकलेट खाने का बुखार ॥

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

सत्य कब्र से भी निकलकर दौड़ता है

राम थक चूके थे
रावण को बाण मारते -मारते
विभीषण ने बताया
उसकी नाभि में तो अमृत है
राम ने अमृत घट फोड़ दिया
रावण मारा गया ॥

तुम भी थक जाओगे
मेरे दोस्त !!!
सत्य को मारते -मारते
क्योकि ....
सत्य रूपी मानव के
अंग -अंग में अमृत -कलश है ॥

अगर , सत्य को
जिंदा भी दफ़न कर दोगे
मेरे दोस्त ... तो वह
कब्र से निकलकर भी दौड़ने लगेगा ॥

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

प्यार एक चुम्बक है


प्यार एक चुम्बक है
मेरे दोस्त !!!
लोहे के चुम्बक से अलग ॥

हर दिल के
एक कोने में पड़ा रहता है
प्यार का चुम्बक
जैसे कोई सुसुप्त ज्वालामुखी ॥
जब जागता है
खीच लेता है
मिटटी के तन को
और उड़नेवाले मन को ॥

अगर काम न कर रहा हो
प्यार का चुम्बक
बढ़ाना चाहते हो इसकी/ चुम्बकीय शक्ति
तो इसे रगड़ो
मुहँ के मीठे बोल से
परोपकार के ढोल से॥

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

अब डरता नहीं , डराता हूँ

बच्चा जब जन्म लेता है
माँ की छाती को रौंदता है
पिता के कंधों पर दहाड़ता है
सच माने ...वह किसी से नहीं डरता ॥

फिर बच्चा बड़ा हो जाता है
होश संभालता है
माँ से डरने लगता है
पिता से डरने लगता है
गुरु जी से डरने लगता है
धर्म से डरता है ॥


फिर एक दिन
वह परिपक्व हो जाता है
अब वह नहीं डरता
माँ से /पिता से /धर्म से
बल्कि वह
सबको डराने लगता है ॥

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

रास्ते

युवा हूँ ...
जिस जगह खड़ा हूँ
रास्तों की गुत्थमगुत्थी
शुरू होती है वहाँ
कुछ रास्ते छोटे है
कुछ बहुत लम्बे
चुनना है सिर्फ एक
अपने लक्ष्य तक पहुचाने के लिए ॥

तो सुनो ...मेरे दोस्तों
अपने आपको तौलो
हर कसौटी पर
फिर चुनो अपना रास्ता
नहीं तो ....
निढाल हो गिर जाओगे
बीच रास्ते में ही ॥

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

तलहट्टी में छिपी यादें

यादें अदृश्य हैं
फिर भी जुडी हैं मन से
ठीक वैसे ही
जैसे इन्द्रियाँ जुडी है तन से ॥

दुसरे इन्द्रियो की तरह
यादें कुछ मांगती भी नहीं हैं
खाने को /पीने को
बस छुपी रहती है
दुबकी रहती है
वर्तमान की तलहट्टी में ॥

जब वर्तमान रेगिस्तान बनने लगता है
तो कभी मखमली दूबों पर चलने वाली यादें
तलहट्टी से बाहर निकल
आगोश में आने लगती है
फिर लगता है
यादों का साथ न छोडू ॥

यादें ....
मन को हल्का कर देती है
नई ऊर्जा भर देती हैं
ताकि हम
सामना कर सके
वर्तमान के रेगिस्तान का ॥

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

फुलझड़ियाँ

-------( १)-----------
छलक
कर थोडा सा शराब
जाम से गिरने को आया
मुझे देख कर
थोडा सा नकाब आपने ज्यो उठाया ॥

-------( २)-----------
मुस्कुराओ .....
मगर दूर से ही
आगोश में आकर तेरा मुस्कुराना
मानो....
आग में घी डालना ॥

--------( ३)----------
तुम्हें देखकर / सूरज ने कहा
बहुत दिनों बाद आया समय /मनाने का जस्न
ऐ बादलों दूर हटो / देख लेने दो
अपने यार का गदराया हुस्न ॥

---------( ४)------------
ग्रेनाईट सा कड़ा मेरा दिल
मोम की तरह पिघल गया
मुंह से बात न हुई तो क्या
दिल से दिल तो मिल गया ॥

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

बापू !..मैंने आपको बदनाम नहीं किया

मेरे प्रिय बापू ....
मैं नौकरशाह हूँ
अंग्रेजों ने अंग्रेजियत सीखा दी
चमचमाती कुर्सियों पर बैठता हूँ
लाल -बत्ती वाली गाडी में घूमता हूँ ....
सब लोग मुझे भ्रष्ट कहते है
घपलेवाज कहते है
गलत भी नहीं कहते लोग ॥


मगर ....
मैंने आपको बदनाम नहीं किया बापू
हटा दी थी मैंने
आपकी तस्वीर /अपने कमरे से
जब भेजी थी फ़ाइल
घोटाले /घपले की मंत्री ने
मुझ से हस्ताक्षर कराने ॥

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

किसानों ने हमें शाकाहारी बनाया

पहले भी थे भगवान्
आज भी हैं /कल भी रहेगे
मगर .....
पहले अन्न नहीं थे ॥

हमारे पूर्वज निर्भर थे
जानवरों की माँस पर
भगवानो /देवियों पर भी
माँस का भोग लगाया जाता होगा
आज भी जारी है ॥

फिर किसानो ने
पैदा किया अन्न
हम शाकाहारी बन गए॥

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

खिला अमन का फूल

साठ साल पहले
रोपा था हमने
धर्म -निरपेक्षता का एक अजूबा पौधा
अपने संविधान की उर्वर भूमि पर
सींचा उसे सब देशवासीयों ने
प्रेम /भाईचारा /सौहार्द के जल से
अब उसमे खिले हैं
शांति और अमन के फूल ॥
आओ , दुनियाँ वालों
थोड़ी सी खुशबू
तुम भी ले लो ॥

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

प्रिय ! मेरी बात सुनो


आप प्रकृति की अनुपम रचना है
मगर ...
कृत्रिम प्रसाधनो का लेपन
बनावटीपन जैसा लगता है ॥
मैं आपको रंगना चाहता हूँ
प्रकृति के रंगों से ॥

मैं आपको देना चाहता हूँ
टेसू के फूलों की लालिमा
कपोलों पर लगाने के लिए ॥
मृग के नाभि की थोड़ी सी कस्तूरी
देह -यष्टि पर लगाने के लिए ॥
फूलों के रंग -बिरंगे परागकण
माथे की बिंदी सजाने के लिए ॥
और तो और
थोड़ी सी लज्जा मांग कर लाई है मैंने
आपके लिए
लाजवंती के पौधों से ॥

इसके बाद
हवाएं आपसे अठखेलियाँ करेंगी
इन्द्रधनुष शरमा जाएगा
और तितलियाँ
अजूबा -अजूबा कह शोर मचा देंगी ॥

बुधवार, 29 सितंबर 2010

औरत ही औरत की दुश्मन

विदाई का समय था
माँ की आंखों में आंसू थे
मगर ससुराल जाने से पहले
बेटी को बताना था एक राज ॥

माँ ने बेटी को बताया
पति को वश में रखना
सास है ...
कोई देवी नहीं है कि
उसकी हर नाज़ -नखरे उठाओ ॥

मगर बाद में
जब घर में बहू आई
तो वह वह भूल चुकी थी
बहू की माँ ने भी
उसे वही सिखाया होगा
जो मैंने अपनी बेटी को सिखाया था ॥

बटवारा

उसकी बातें चुभती थी
कील की तरह
यद्प्पी वह सच बोलता था ॥

उसने कहा था
भाईयो की शादी हो गई
बटवारा कर लो चूल्हे का
नश्तर की तरह चुभी थी ये बातें
लगा था .....
साजिश कर रहा था वह
घर तोड़ने की ॥

नहीं पटी
हम सब भाईयो की पत्नियों के बीच
सुनता रहा मैं भी
बेजुवानो की तरह
उनकी उल-जुलूल बातें
अब चूल्हे ही नहीं बटे
खेत बटे /बच्चे बटे
माँ -बाप बटे
सबसे अहम् ....
अपना दिल भी बट गया
और देखिये
हम -सब अब खुश हैं ॥

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

जाल

हालांकि ....
मैं /आप /हमसब
रोज देखते है
मकड़े को
बुनता हुआ एक जाल
फिर फंसता हुआ उसी जाल में भी ॥

फिर भी ...
हम बाज नहीं आते
बुनते रहते है
घर में /मंदिर में /समाज में
स्वं को फंसाने वाला एक जाल
और अंततः हम फंस जाते है ॥

फैसला अयोध्या का

सबको.....
फैसले का है इंतज़ार॥


कौन जीतेगा
कौन हारेगा
बजेगा शंख
या होगा अज़ान
या फिर शुरू हो जाएगा
एक नया घमासान
सोच -सोच कर सब है बेज़ार ॥

हम फैसले की नहीं
अपने दिल की सुनेगें
जब बैठा ही दिल में खुदा
तो बांकी बाते है बेकार ॥

कहीं ये फैसला
बढ़ा न दे
राम -रहीम का फासला
उजड़ न जाए
कितनों का घोसला
और समाज हो जाए तार -तार ॥

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

अयोध्या --तीन कविताएं

.............(१)..........
अयोध्या को
हमने बना दिया है
एक अखाडा
जहां राम और रहीम का दंगल
कराने को आमदा है हमलोग ॥

ऊपर बैठा इश्वर
ठठाकर हंसता है
कहता है
मैंने बनाया मनुष्यों और जानवरों को
मगर जानवरों ने नहीं बनाया
अपना धर्म इंसानों की तरह ॥


............(२)................

मुझे तलाश है
हिन्दू धर्म मानने वाली
एक अदद गाय की
ताकि ,उसका दूध
मैं पी सकू और
पिला सकू अपने बच्चे को
क्योकि मैं हिन्दू हूँ ॥

मेरा मुस्लिम मित्र भी
तलाश में है
मुस्लिम धर्म मानने वाली गाय की
ताकि वह
उसका दूध अपने बच्चे को पिला सके ॥


हम दोनों
अयोध्या आये है
ऐसे ही गाय की खोज में
ओ !....
अयोध्या के मौलवियों /पूजारियो
अगर कही मिलता हो
अलग -अलग धर्म मानने वाले जानवर
तो अवश्य बताये ॥

-----------(३).......

अयोध्या .....
जहां मिलता था अहर्निश
शंख और घड़ियाल का स्वर
अब मिलती है
सैनिकों के बुटो की खटखटाहट ॥

मुस्लिम कहते है
वह मस्जिद कैसा
जिसमे नहीं पढ़ी गयी नवाज़ १२ वषों तक
हिन्दू कहते है
कण -कण में विराजते है राम ॥

तो फिर यह कैसी लड़ाई
कितना फर्क है
हमारी कथनी /करनी में



शनिवार, 18 सितंबर 2010

मैं इंद्र का पुजारी हूँ

कुबेर को नहीं पूजता मैं
मैं तो इंद्र का पुजारी हूँ
आप खुश होते होंगे /मर्सिडीज खरीद कर
मैं खुश हूँ /ट्रैकटर खरीदकर
जी हाँ ....मैं किसान हूँ ॥

सूरज को नाचता है
मेरे खेतों में लगा सूरजमुखी का फूल
पुलकित हो जाता है
मेरा रोम -रोम /जब देखता हूँ
रस से भरे गन्ने के मोटे-मोटे डंठल

ताजे मकई के हरे -हरे भुट्टे
ताजे फल /ताज़ी सब्जियां
ताज़ी मुली और गाजर के
स्वाद का क्या कहना ॥
शायद यही है
मेरे स्वस्थ शरीरका गहना ॥

मेरे बच्चे ने
कृषि -विज्ञान में स्नातक
और कृषि प्रबंधन पढ़ा है
नई खेती की शुरुयात की है उसने
वर्मी कम्पोस्ट
और नए कृषि यंत्र की मदद से॥


किसानों को संगठित किया उसने
खाद्य -प्रसंकरण की कारखाना खोलेगा वह ॥
अपने कृषि उत्पाद वह
मिटटी के भाव नहीं बेचेगा ॥




शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

जवानी

जवानी .....
काम की आग है
उर्जा का राग है
साहस का पंख है
बिच्छू का डंक है ॥

थोडा संभलकर चलिए
थोडा संभलकर बोलिए
थोडा संभलकर पीजिये
जवानी में ॥

क्योकि
बर्फ की ढाल है जवानी
फिसल गए
तो संभलना मुश्किल ॥
बन्दुक की गोली है जवानी
निकल गई
तो रोकना मुश्किल ॥

बुधवार, 15 सितंबर 2010

सूई

सूई ....
बड़ा ही डर लगता था /बचपन में
चार की लम्बी सूई से ॥

अब ये सूई
खून चूसवा हो गई है
हम डॉक्टर बदलते है
जब उनकी सूई बेअसर होती है ॥
मगर ...तब तक डॉक्टर
चूस लेते है खून
डेंगू मच्छड़ो की तरह ॥

मास्टर की सूई का असर
तब चलता है
जब हमारे बच्चे लाते है
इम्तहान में ३० /१०० ॥

खरी -खोटी बातों की
सूई लगाती है
सास -बहु एक दुसरे को ॥
टैक्स की मोटी सूई
घोपती है सरकार॥
वालीवुड /होल्लीवूद के कलाकार
नए फैशन के सूई लगाते है
मगर भाई ,...
पुलिस की सूई
नक्सलवादी बनाती है ॥

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

कुदाल छलांग नहीं लगा सकता

सोना छलांग लगाता है
चाँदी भी उछलती है
और ....
शेअर बाज़ार के क्या कहने
सब खुश होते है ॥

मगर ...
चावल /गेहूँ /दाल
नहीं लगा पाते छलांग
ये जब सरकते है
सब लोग कहते है
महँगाई डायन आ गई ॥

इन्हें किसानों ने उपजाया है
इनके पैर नहीं होते
उछलेगे कहाँ से
इन्हें तो हम /सरकार
गिराने की फिराक में रहते है ॥

आखिर ...
कुदाल कितना उछल सकता है ?

छोड़ो पब ,भजो रब

छोड़ दिया पब को
जोड़ लिया रब को
निकल पड़ा मैं
गले लगाने सब को ॥

जबसे सजाने लगा हूँ
प्रभु के आरती की थाली
सजाने लगे है ,प्रभु भी
मेरा हृदय ,बन कर माली ॥
वंदना है मेरी ...
साथ ले चल तू सबको ॥

जब से मन ने किया है
सदविचारों का पान
कलुषित हृदय गाने लगा है
नित्य नए अमृत गान
अर्चना है मेरी
संभाल ले तू सबको ॥

सोमवार, 13 सितंबर 2010

तुम्हें नरसिंह बनना होगा

तुम मुझे जो भी कह लो
सुन लूंगा चुपचाप
चाहे मुझे तुम
पाखंडी /देशद्रोही /बलात्कारी
व्यवस्थाओ को तोड़ने वाला
या फिर उग्रवादी विचारों वाला कह लो
तुम जानते हो /इन बातों से
मैं तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता ॥


भला , सिर्फ विचारों के प्रहार से
क्या बिगड़ेगा तुम्हारा
जरा ,..एक चोर को चोर कह कर देखो
कुरूरता के भयानक पंजे
चीथड़े -चीथड़े कर देगी तुम्हें
अरे ..छोड़ो ....
सच का सामना कितने लोग करते है ॥

जानता हूँ ...
सत्य कर्म पर अग्रसर प्रह्लाद पर
जुल्म ढाते हिरण्यकश्य्पू का वध करने
कोई नरसिंह नहीं आयगा ॥

मेरे दोस्तों ...
लगाना होगा इन्कलाब
जलाना होगा
अपने अधिकारों के तेल से बने लुकाठी का मशाल
जागो ...
तुम्हारे अंगों में पानी नहीं /लाल खून है
बढ़ने दो अपने नाखुनों को
हो जाने दो केश -राशि लम्बे
बन जाओ नरसिंह
वध कर दो उन हिरनकश्पुओ का
जो....
भ्रस्टाचार/आतंकबाद /नक्सलवाद के
आग की लपटें फैला कर
कर रहे है देश को खोखला
अंदर ही अन्दर ॥

फूलों ने हँस कर बताया


पूरी तरह
खिली भी नहीं थी
कली थी
कल तो तोडा था
मेरे बच्चे ने
गणेश -पूजा के लिए ॥

आज पुनः
पूजा से पहले देखा
वह कली
अब फूल बन कर हँस रही थी ॥


वह कह रही थी ...
मुझे मालूम है
तुम मुझे फेंक दोगे
कूड़ेदान में ॥
मैंने ईश्वर के चरणों में रहकर
सिख लिया ज्ञान ॥
तुम्हारी तरह
मंदिर /मस्जिद/गुरु द्वारा /चर्च में
नहीं भटकता ॥
और सुनो .....
मैं तुम्हारी तरह
बात -बात पर नहीं रोता
परिवर्तन से डरना कैसा ॥

रविवार, 12 सितंबर 2010

मैं बूढ़ा नहीं होऊंगा

मैंने ....
अपने दोस्त से कहा
क्या बचपन लौट सकता है ?
क्यों नहीं ...
बचपन के दोस्तों से मिलिए
पुरानी बातों को याद कीजिये
दिल खोल कर हंसिये
आपका बचपन लौट जाएगा ॥


वैसा ही किया मैंने
लंगोटिया दोस्तों के पास गया
उन्हें गले लगाया
खूब बातें की
अपने प्यार की
शैतानी की
पतंग काटने की
और कागज से बने नाव के
बहते पानी में दौड़ लगाने की ॥

सच में ....
जब तक मेरे दोस्त
इस दुनियाँ में रहेगे
मैं बूढ़ा नहीं होऊंगा ॥

शनिवार, 11 सितंबर 2010

अकुलाती मेरी बाँहें

मौन निमंत्रण सी तेरी आँखे
गर्माहट देती साँसे
कलि खिलकर फूल बनी है
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाहें ॥

छन-छना-छन कंगन के संग
पायलिया सुर में गाये
नभ के पंछी
तुम्हें देखकर
पल -पल बदले राहें ॥
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाँहें ॥

खेत के पीले सरसों
तुम्हें छूने को तरसें
मेहँदी के
रंगों के घुलकर
कितना भरू मैं आहें ॥
तुम्हें गले लगाने को
अकुलाती मेरी बाँहें ॥

" बादलों की चाहत '"


मैं पहाड़ो के ऊपर क्यों हूँ
...कोई बतायेगा ?
ये पहाड़ो के बंजर पत्थर
नहीं देखना मुझे अब

मुझे तो हरियाली पसंद है

...मैं बरसुगा ...

.इन्ही के ऊपर
अगली बार जब कोई आएगा
तो मेरा दोस्त पहाड़

उसे छाया देगा ..

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

एहसास

पहाड़ो के
शिखर पर बैठे पत्थर
समय के चक के साथ
टूट कर
समा चूके है
सडकों के नीचे

पत्थर कहता है
आज जाना मैंने
दुःख किसे कहते है

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

गरीब के आंसू

कहते हैं
बड़ा दम होता है
गरीब की आंखों से
निकलने वाले आंसुओ में ॥
भष्म कर देते है
पत्थरो से बने महलों को ॥

ठीक उसी तरह
जैसे नदी का बहता
शीतल -कोमल जल
बालू बना देती है
तोड़ -तोड़ कर
पत्थरो को॥

बुधवार, 8 सितंबर 2010

चीटियाँ और हम

उफ़ ये चीटियाँ
बिना बजाये सीटियाँ
खोज लेती है मिठाईयाँ
ठीक मनुष्यों की तरह
जैसे खोज लेते है हम
सारे हथकंडे अपने स्वार्थ पूर्ति के ॥

एक दिन .....
माँ ने तरकीब निकाली
मिठाईयों को बचाने की
किचेन के टेबल के
चारों कोनों के नीचे रख दिया
पानी से भरे कटोरे ॥

वाह रे पानी !!
चीटियों को तो हमने रोक दिया
हमें कौन रोकेगा
स्वार्थ की मिठाईयाँ खाने से ॥
क्या गुरु के सानिध्य में
पूजा में /जप -तप में /भजन में
पानी जैसा दम है ??

नया तराना


स्वर कोकिल से कंठ तुम्हारे
शबनम बने पसीने
होठों की लाली है जैसे
चाँद में जड़े नगीने ॥

देख रहे है नभ के पक्षी
नए फैशन के कपडे पहने
पूरा बदन जैसे एक गहना
बिन सोने के गहने पहने ॥

नए जगत के मायाजाल से
लगा है मन मेरा घबराने
आओ ,हम सब साथ बैठे
आज गाये कोई नए तराने ॥

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

बंदरों को तो फंसना ही है

मित्रों ,यह कविता बिहार में अक्टूबर -नवम्बर २०१० में होने वाले चुनाव के परिपेक्ष्य में लिखा गया है ॥लालटेन
तीर ,हाथ और कमल ...विभिन्न राजनितिक दलों के चुनाव चिन्ह है //

आ गया मदारी
बजा रहा है डुगडुगी
बंदरों में होने लगी है सुगबुगी
अनेकों हैं नुस्खे
बंदरों को रिझाने के
नज़र डालिएगा इन पर जरा हंस के ॥

पिछली गल्तियाँ अब नहीं करूगाँ
सवर्णों को भी टिकट दूगाँ॥
अपने शाले ने भोंका था भाला
लगाने चला था मेरे ही घर में ताला
इसीलिए घर से उसको निकाला
रोशनी फैलाना ही बचा है मेरा काम
चाहे जाए तो जाए मेरा प्राण
आप ही हैं मेरे कृपा निधान
बातें सुन लो मेरी खोलकर अपने कान


दौड़ पड़े है बन्दर
मदारी ने ऐसा मारा मंतर
विकास का टायर
भाषणों से होने लगा पंचर
लगता है जाति की हवा चलेगी
ईसीसे सबकी दाल गलेगी॥

दिल्ली का फंडा
बिहार में बना है गुल्ली -डंडा
यहाँ "हाथ " का साथ नहीं
"लालटेन " बिन रात नहीं
बिना" तीर" के घात नहीं
"कमल" बिना कोई बात नहीं ॥




सोमवार, 6 सितंबर 2010

२१ व़ी सदी के मित्र

पहले के लोग कहते थे
"मुझे मेरे मित्रों से बचाओ "
भाई ...अब
मैं तो लगा हूँ
मित्र बनाओ अभियान में ॥

२१ व़ी सदी के मित्र
तंग नहीं करते
वे अपने मित्रों से नहीं कहते
चलो न ....
तोड़ लेते है
रामू काका के खेत से
रस भरे मीठे गन्ने
उखाड़ लेते है
हरे चने की झंगरी
मटर की हरी -हरी फलियाँ ॥

पेड़ों पर चढ़कर
गोरैया के अंडे खोजने की जिद करते है ॥
नहीं कहते
कुऐं की जगत पर बैठ कर नहाने को ॥

२० व़ी सदी के मित्र
ऐसा करते होंगें ॥

अब के मित्र
टेलीफोन कर भी तंग नहीं करते
गाना सुनवाते है
कविता पढवाते है
अपने कार्टून दिखाते है
और तो और
अपने बर्थडे पर
कुछ भी खर्च नहीं लगता ॥
इसके उलट
इन्टरनेट से मिलती है
फूलों के गुलदस्ते और मिठाईयाँ॥

अब कहाँ नहीं है मेरे मित्र
अजी ,भारत की बात छोडिये
विदेशों में भी बैठे मेरे मित्र
कविताएं पढ़ते है मेरी ॥

तेरा साथ हो तो

तेरा साथ हो
और
हाथो में हाथ
डाले चलेगें हम
नाप लेगे सारी दूरियाँ
मिटा देगे अन्धकार
दिखा देगे ....
सब तलाक़ शुदा दम्पतियों को
कैसे किया जाता है प्यार ..

सलाम -बंदगी

बसंत के फूल को सहना पड़ता है ,पतझड़ का धूल
अपनी जवानी को सहना पड़ता है ,बुढ़ापे का शूल ॥

धन -लोलुपता और भौतिक सुन्दरता बनाने के क्रम में
हम नहीं बना सके ,सामाजिक रिश्तों का स्वस्थ पुल ॥

प्रकृति की भाषा समझने में ,अबोध है बिलकुल
खनकते है सिक्के ,जब सब रहते है मिलजुल ॥

मेरे दोस्तों ,कर लो खुदा को सलाम बंदगी
न जाने कब जिंदगी की बत्ती हो जाए गुल ॥

रविवार, 5 सितंबर 2010

डाकू

सन्नाटो को चीरती
घोड़ों की टाप
और घुड़सवार की रोबदार आवाज
डाकुओ की पहचान थी
चम्बलो की बीहड़ो में रहते थे ॥

आज भी कायम है
डाकुओ की बादशाहत
हमने तो पहनाया था ताज
लोकतंत्र के सिपाही का
उस सिपाही का
जिसकी आवाज लोकतंत्र में
गोलियों से भारी होती है ॥

मगर ....
इन सिपाहियों की आवाज
कुंद हो गई है
नाख़ून और पंजे बढ़ गए है ॥
इन्होने अपनी सेवा में
लगा रखी है ,कई पुतलीबाई
घोड़ो की जगह है
चमचमाती गाड़ियाँ॥

एक विशेष अंतर आया है ...
पहले
हम डाकुओ से डरते थे
आज
डाकू हमें डराते है ॥

शनिवार, 4 सितंबर 2010

अनुभव

एक दिन में नहीं आता
धीरे -धीरे
जेहन में पसरती है अनुभव
लडखडाती है
पुनः कुलांचे भरती है ॥

कभी -कभी लगता है
हम पूर्ण हो गए है
अनुभवी हो गए है
इतराने लगते है अपने अनुभव पर ॥

मगर ....
फिर कुछ ऐसा घट जाता है
अनुभव का लम्बा वृक्ष
बौना हो जाता है ॥

लगता है
अभी तो हम बच्चे है
टूट जाता है
अनुभवी होने का दंभ ॥
हम सीखते है
अनुभव बटोरना
शायाद ...जीवन पर्यन्त॥

झूट बोलने की जिद

यह जानते हुए
सच की खुशबू
एक दिन फैलेगी ही
उर्जा व्यर्थ गंवाते है हम
ढकने में उसे
झूठ की चादरों से ॥

सच वह ओस है
जिसे प्रत्येक दिन
झूठ का तमतमाता सूरज
गायब कर देता है ॥

मगर पुनः
कल सबेरे
सच का ओस
फिर हाज़िर हो जाता है
अपने चमकीले रूप में ॥

मेरे दोस्त ...
सच को परास्त करना नामुमकिन है
छोड़ दो जिद
झूट बोलने की ॥

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

सरकारी बन्दूक

बन्दूक .....
एक भय है
एक डर है
लोगों को डराने की चीज है
मारने की नहीं ॥
इससे गोलीयाँ
शायद ही कभी निकलती हो ॥


जो इस बात को समझ गया
वह बन्दूक से नहीं डरता ॥
बल्कि ...
चाकू दिखाकर
छीन लेता है बन्दूक ॥

हमारे नक्सली
सरकारी बंदूकों की भाषा
अच्छी तरह पढ़ चूके है ॥

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

झूठा प्रेम

कृष्ण बनने की चाहत में
अपना सब कुछ लुटा दिया
चरित्र .ईमानदारी और परमार्थ
सब झूठे प्रेम में गला दिया ॥

अब पर कटा पक्षी हू
या ठूंठ हो गया एक वृक्ष
अब तो थोड़ी सी हवा के लिए
हवा ने भी रुला दिया ॥

गुरुर ब्रह्मा ,गुरुर बिष्णु
गुरुर देवोः महेश्वरः
धन्य हैं वो गुरु ,जिन्होनें
ह्रदय में प्रेम पुष्प खिला दिया ॥

कला सतह ताप का शोषक होता है

बहुत कम मित्रों को मालुम है कि मैं एक बढ़िया शिक्षक भी हु ..
विज्ञान और गणित मेरे प्रिय विषय रहे है
एक बार मैं एक छात्र को भौतिक विज्ञान में ताप (temperature ) पढ़ा रहा था
मैंने बताया ..." काला सतह ताप का शोषक होता है ...उदहारण के लिए
तवा के बारे में बता रहा थी ...कि काला क्यों होता है "
...इतना बोलना ही था कि ..छात्र ने कहा समझ गया सर ...काली भैस ..और काले हाथी को ज्यादा गर्मी क्यों लगती है "".....
मेरी जीव-विज्ञान कमजोर है ...क्या यह उदहारण ...सही है ...
उत्तर कि प्रतीक्षा है ....यह चुटकुला भी हो सकता है ...

सोमवार, 30 अगस्त 2010

बेटी --२ कविताये

(१)
मुनिया ....
रोज सुबह उठती है
बर्तन मांजती है
मात्र दस साल की मुनिया
बना लेती है रोटी
और पिस लेती है चटनी
प्याज .हरी मिर्च और अदरख की ॥

स्कुल से भाग आती है ,मुनिया
खेतों पर काम रहे
अपने बापू को पहुचाने
कपडे में बांधकर
चार रोटियाँ ,चटनी और प्याज ॥

माँ ने उसे दी है
बकरी का बच्चा
उसके लिए भी लाती है ,हरी दूब
माँ ने उससे कहा है
इसे बेचकर बनबा दूंगा एक जेवर
तुम्हारी शादी में ॥

माँ के कहने पर
बंदरों सी उछलती
चढ़ जाती है ,मुनिया
अपने घर के छत पर
रुई के फाहे जैसे चलती है
कही टूट न जाए खपड़ा छत का
तोड़ लाई है हरे -हरे नेनुआं
रात के खाने के लिए ॥

जानते है ....
मुनिया एक बिहारी मजदूर की बेटी है ॥

(२)
दस साल की मेरी बेटी
आज काटेगी केक
जन्म- दिन है उसका
बाटेगी ताफ्फियाँ पूरे मोहल्ले में ॥

रोटी और सब्जी बनाना तो दूर
खा कर बर्तन रख देती है सिंक में
माँ के भरोसे ॥

नहीं लाती बाज़ार से कुछ भी
अभी उम्र ही क्या है ?

रविवार, 29 अगस्त 2010

अपने गाँव नहीं जायेंगे आप

मैं गाँव जा रहा हू ...
शायद आप हँसे ॥

सिखाना चाहता हू
किसानों को
बेकार पड़े गोबर
और पेड़ की सूखी पत्तियों से
जैविक खाद बनाना ॥

भू -गर्भ जल की कमी से
चिंतित है अपना देश
अभियान चलाना चाहता हू
रेन -वाटर -हार्वेस्टिंग का
ताकि किसान
भैसों /गायों को धोने में
बागवानी में
इस्तेमाल करे वर्षा जल ॥

गाँव के तालाब
जो शौच स्थल बन गया है
उसकी जल -कुम्भी निकालकर
सबको सिखाना चाहता हू
सहकारी मछली पालन
ताकि मेरे प्रदेश को न मगानी पड़े
आंध्र -प्रदेश से मछलियाँ ॥

सिखाना है मुझे
कैसे वो देख पायेगे
इन्टरनेट पर अपने उत्पादों के भाव
ताकि स्थानीय व्यापारी न करे शोषण ॥

और ......
माँ से भी पूछ लूँगा
कैसे चलता था मैं
इन मिट्टियों में घुटनों के बल
और अपने बचपन की शरारतें
सुनकर
जी लूँगा एक बार फिर से अपना बचपन ॥

शनिवार, 28 अगस्त 2010

हड़ताल एक यज्ञ है

मित्रों ......
हड़ताल एक यज्ञ है
कर्मचारियों द्वारा लगाया गया नारा
घी और हुमाद
हडताली नेताओं के भाषण
वेदों के मंत्रोच्चार
उठने वाला धुयाँ
वार्ता के लिए बुलाया जाना
और मांगों को मनवा लेना
अभिस्ट की प्राप्ति ॥

चिल्ला रहा था
कर्मचारियों का नेता
इसलिए दोस्तों
जोर-जोर से नारे लगाओ ॥

जब लाल कोठी के निक्क्मो का वेतन
तिगुना हो सकता है ....
हमलोगों का क्यों नहीं ॥

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

युवा मन की ख्वाहिसे

लाखों पैदा हो रहे युवाओं में से
मैं भी एक युवा हू ॥

गन्ने के रस से नहा कर
और चासनी की क्रीम लगाकर
रोज सुबह -सुबह
बाहर निकलती है मेरी ख्वाबें॥
जब मैं अपने सारे सर्टिफिकेट
एक बैग में डाल कर
निकल पड़ता हू ...
साक्षात्कार के लिए ॥

खूब उडती है मेरी ख्वाबें
मानो कल ही खरीद लूँगा
पार्क स्ट्रीट में अपना एक बंगला
मारुती सुजुकी का डीजायर
सोनी बाओ का लैप -टॉप
ब्लैक -बेर्री का मोबाइल
और फिर चखने लगूगा
येलो चिली रेसतरां में बैठकर
चिकेन टिक्का ॥

मगर .....
शाम होते -होते थक जाती है मेरी ख्वाबें
करेला सी कडवी हो जाती है मेरी ख्वाबें ॥

कल फिर सुबह ...
मेरी माँ और बहन
माथे पर तिलक लगाकर कर
और व्रत कर
मेरे ख्वाबों को फिर से उड़ाएगी ॥

मैं औरत हू

सच बोलिएगा
पत्नी की बार -बार की फरमाईशों से
मन उबता है या नहीं ॥

आज तीज है
कल हरतालिका
फिर दशहरा
फिर धनतेरस
-----------
कुछ न कुछ खरीदेगी ही मैडम ॥

एक दिन बोल दिया
सहसा मुहँ से निकल पड़ा
क्या करोगी लेकर
सेल्फ साड़ियों से भरी है
जेवर लॉकर में पड़ी है ॥

बोली .....
मैं औरत हू
नहीं मांगती मैं कुछ
मेरे अन्दर की औरत मांगती है
मेरी मांग न हो
तो समझो
मेरे अन्दर का औरत मर चूका है ॥

बादलों के बीच बैठा मैं

हिमालय .....
शायद स्वर्ग का द्वार
कहना गलत न हो ॥

मैं टाइगर हिल की चोटी पर था
बादलों के बीच बैठने की
पहली अनुभूति थी मेरी
मानो ...बचपन लौट आया था
बादलों को पकड़ने की कोशिस
करता रहा मुठियों में
एक अबोध बालक की तरह ॥
बादलों और हवा की अठखेलियाँ
कैसे कहूँ /कैसे लिखू ॥
१०० मीटर नीचे नहीं देख पा रहा था
अपने मित्र को .....
आवाज बेशक आ रही थी उसकी ॥

आज जाना
कुहासे से क्यों होती है
हवाई -दुर्घटनाएं॥

पहाड़ की उच्चतम शिखर से
स्वर्ग सी लग रही थी "पोखरा "॥
सूर्योदय होने को था
हिमाच्छादित शिखरों का
बदल रहा था रंग ...क्षण -क्षण ॥
श्वेत धवल से गुलाबी
गुलाबी से रक्तिम
रक्तिम से सुनहला ...
कैसे बताऊ
बदलते रंगों का अलौकिक संसार ॥

ओ ...नेपाल के दोस्तों !!
बचा कर रखना
प्रकृति के इस अनुपम खजाने को ॥

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

पत्नी के नाम एक पति का ख़त

तुम सुन्दर हो
शिक्षित हो
हसीन हो
मोहल्ले में आप सब सबकी प्रिय है ॥
तुम मंदिरों में भी जाती हो
तीज करती हो
नवरात्र करती हो ॥

मगर एक काम गलत कर देती हो
घर की बूढी महिला से
रूखेपन का व्यवहार कर
आपकी सास भले होगी वह
लेकिन , मेरी तो माँ है ॥
तुम भी तो दौड़कर चली जाती हो
अपने मायके
जब सुनती हो
माँ गिर पड़ी फिसलकर बाथ-रूम में ॥

ऐसा कुछ ना करो
कि माँ रो दे अन्दर से ॥
जब मैंने जन्म लिया था
बिजली नहीं थी
जिसे तुम बुढ़िया कहती हो
उनकी हाथों ने
रात भर स्वम हाथ -पंखा कर सुलाया है मुझे ॥

मेरी मानो ....
सिर्फ एक दिन लिए
मन ही मन
बुढ़िया बनकर चिंतन करो ॥

कोई मुझे हँसायेगा क्या

मित्रों .....
मैं कई दिनों से नहीं हंसा हू ...
हँसना चाहता हू
पूरे शरीर की ताजगी के लिए
लाफ्टर क्लब ज्वाइन किया
कोई फायदा नहीं हुआ ॥

कोई क्यों हंसेगा ......
सांसदों के वेतन तीन गुना हो जाने पर
रास्ट्र्मंडल खेलों की बदहाली पर
महिला आरक्षण बिल पास न होने पर
अभिनेत्रियो के बिकनी क्विन बनने पर
बाप -बेटे के साथ पीने पर
ट्रेन के आमने -सामने टक्कर हो जाने पर
कसाब /अफजल को अभी तक फांसी न होने पर
पाकिस्तान को बाढ़ मदद के ५० लाख डालर देने पर ॥

मेरे दोस्तों
कोई समाचार है आपके पास
जिसे सुनकर ....
मैं दिल खोलकर हँस सकू ॥

भींगे बदन ने तो तन -मन जला डाला

काले बादल
और तेरी काली जुल्फों में
सिर्फ एक ही अंतर है
काले बादल सिर्फ बरसात में बरसते है
काली जुल्फें आपकी मर्ज़ी पर ॥

बन्दूक से चली गोली
और आपकी आंखों से चली गोली में
सिर्फ एक ही अंतर है
बन्दूक की गोली एक को मारती है
आपके आंखों की गोली लाखों को ॥


कहते है
पानी आग को बुझा देती है
मगर ये क्या
आपके भींगे बदन ने तो
मेरा तन मन ही जला डाला ॥

बुधवार, 25 अगस्त 2010

डेटोल की खुशबु

आव़ाज सुनकर
पहचानना आसान होता है
मगर सूंघकर किसी स्थान का पता लगाना
शायद मुश्किल हो ॥

मगर डेटोल की खुशबु
अस्पताल होने का पक्का प्रमाण होगा ॥

मैं गया ....
गाँव के स्वास्थ्य -उपकेन्द्र
पट्टी बंधवाने अपने चोट पर ॥

अन्दर घुसा
बेड पर दो -तीन कुत्ते सोये थे
मानो ईलाज कराने आये हो
एक कमरे में
गाय ने अभी -अभी बछड़ा जना था
डेटोल की खुशबु तो नहीं मिली
गोबर की संडास भले मिली ॥
मुझे लगा ....
पशु अस्पताल तो नहीं आ गया मैं ॥

लेकिन नहीं
गाँव के ही मानव अस्पताल में था मैं
पता चला
नर्से और कम्पौन्दर
पल्स -पोलिओ अभियान में व्यस्त है ॥
और इधर .....
मानव अस्पताल
तब्दील हो गया है ,पशु अस्पताल में ॥

मेरे बारे में