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शनिवार, 4 सितंबर 2010

अनुभव

एक दिन में नहीं आता
धीरे -धीरे
जेहन में पसरती है अनुभव
लडखडाती है
पुनः कुलांचे भरती है ॥

कभी -कभी लगता है
हम पूर्ण हो गए है
अनुभवी हो गए है
इतराने लगते है अपने अनुभव पर ॥

मगर ....
फिर कुछ ऐसा घट जाता है
अनुभव का लम्बा वृक्ष
बौना हो जाता है ॥

लगता है
अभी तो हम बच्चे है
टूट जाता है
अनुभवी होने का दंभ ॥
हम सीखते है
अनुभव बटोरना
शायाद ...जीवन पर्यन्त॥

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना. मैंने अपने ब्लॉग संग्रह को एक नया नाम दिया है.
    आपका पूर्ववत प्रेम अपेक्षित है .
    www.the-royal-salute.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

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