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रविवार, 23 जनवरी 2011

मुझे रोना नहीं आता


दोस्तों ....
मुझे रोना नहीं आता
सीखू भी किससे
हाल के दिनों में
मैंने नहीं देखा किसी को
जार -ज़ार रोते //

किसी के यहाँ दुःख बाटने जाता हूँ
पहन लेता हूँ कला चश्मा
ताकि लोग यह न कहें
मैंने रोया ही नहीं//


पिता का नश्वर शरीर
पंचतत्व में विलीन हो चूका था
मेरे आने से पहले
आने पर रोने की कोसिस की
मगर लोगों ने चुप करा दिया //

पहले माँ की आँखें
डूब जाती थीं आंसुओ में
जब बेटी बैठती थी डोली में
बेटी ने लव -मैरिज की
माँ की आंखों में भी अब
नहीं आते आंसू //

सच है दोस्तों !
मरने -मारने की रोज आती खबरों
और हंसने के चक्कर में
हम रोना भी भूल गए //

शनिवार, 22 जनवरी 2011

सुमन अग्रवाल ...कूची की कविता




चित्रकारों की कूची ही कलम होती है और चित्र ही उनकी कविता / इन्हीं चित्रकारों में एक है सुमन अग्रवाल कोलकाता की ..इनकी चित्र..लुभावनी है ...इनके चित्र देखकर मैं लिखने को मजबूर हुआ ...खुदकिस्मती से ये मेरी कवितओं की प्रशंसक भी है

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कविता में हम शब्द बांधते
गाते है गीत अमन के
हर निर्जीव सजीव लगती है
ऐसे ही हैं, हर चित्र सुमन के //

उनकी कूची ही कविता है
हर रंग हैं, झोंके पवन के
आंखों से होकर,दिल में घुस जाते
ऐसे ही हैं ,हर चित्र सुमन के //

हर चित्र में श्रींगार है ऐसा
दीखते हो जैसे ,अंतरमन के
उकेरा है हर चित्र,बड़े लगन से
ऐसे ही हैं ,हर चित्र सुमन के //

रविवार, 16 जनवरी 2011

मन भवरा बड़ा बेईमान


जवानी की यादों की
झूला वे झूले
उनके बाल है उजले
गाल है रूखे
मन भवरा दौड़े
जिधर फूल देखे //

वे पीते है जी भर कर
उरों के दो प्याले
गंध अभी भी हैं फूलों में
भरसक वे सूखे
मन भवरा दौड़े
जिधर फूल देखे //


हाथो
से लाठी का
लेते वे सहारा
आंखों का मत पूछो
वे तो नजारों के भूखे
मन भवरा दौड़े
जिधर फूल देखे //

बातों ही बातों में
चुटकी वे लेते
होते हैं खुश देख
नाती और पोते
मगर कोयक की कुक सुन
मन उनका चीखे
मन भवरा दौड़े
जिधर फूल देखे //

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

हवा असमंजस में है





रेत कहती है ....
रुको हवा रुको
क्यों बहती हो
मुझे उड़ा कर
लोगों की आंखों में
समा देती हो
फूलों पर बैठा देती हो //

हवा कहती है ....
फूलों की खुशबू
कहती है मुझसे
उड़ो -उड़ो
मुझे दूर -दूर फैलाओ
जो डूबे है प्रेम-विरह में
उनको गले लगाओ //

दोस्तों !
हवा आज असमंजस में है

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

फूलमतिया


फूलमतिया जवान है
मगर ...
नहीं लगाती सिंदूर और बिंदी
नहीं पहनती चूड़ी और पायल
वह मसोमात जो ठहरी //

नरेगा योजना में मिटटी ढोते
देखा उसे पहलीबार
उससे कोई बात नहीं करता
उसका श्वशुर और वह
अलग -थलग है भीड़ से
अगर शहर में होती
तो उसके कई यार होते //

मैं योजना का हाकिम था
उसे और उसके स्वशुर को बुलाया
पांच सौ मिलते है
लक्ष्मीबाई पेंशन के तहत //

फूलमतिया की आंखों में जिजीविषा है
शादी के वक़्त बीमार था उसका पति
एड्स था उसे
दुसरे ही दिन स्वर्गवासी हो गया
सुहाग रात क्या होता है
नहीं जानती वह //

सोचा ...
हाकिम होने के नाते ये बात
सार्वजनिक कर दूँ
मगर ठिठक गया
गाँव में अभी भी
शौच के वक़्त
और आँगन कूदकर
मुह काला करने वालों की कमी नहीं //

सोचिये ...
हम क्या कर सकते है
क्योकि
ऐसी फूलमतिया एक नहीं ,अनेकों हैं //

बुधवार, 12 जनवरी 2011

आधुनिक सोच

दादा जी /पापा जी /माता जी
मुझे गर्व पर है आप पर
किसी घोटाले में
नाम नहीं आपका
मगर मै
आप लोगों के द्वारा बनाए
सत्य के मार्ग पर नहीं चलूँगा //

मैंने पढ़ा है पापा
अगर हाथो में हो
मख्खनदार बिस्कुट
तो नहीं भौकते
रास्ते के कुत्ते //

गुस्ताखी माफ़ पापा !
जिस सत्य के कांटे को दिखाकर
डराते थे मुझे बचपन में
बड़ा होने पर
मैंने उसे भोथरा पाया
सॉरी पापा !
मुझे आदमी नहीं
अमीर बनना है //

सोमवार, 10 जनवरी 2011

हिमालय और हम


१९ वी सदी तक
तुम गर्व से चूर थे हिमालय
बौना बनाते रहे तुम
हम मानवों को //
हिमाच्छादित शिखरों को दिखा-दिखा
मुंह चिढाते रहे //

चिर दी
हम मानवों ने
तुम्हारी छाती
२० वी सदी में
गाड आये अपना झंडा
तुम्हारे मस्तक पर //
और सुनो
ढेर सारा कचड़ा छोड़ आया हूँ
तुम्हारे गोद में
जो कह रहे है कहानी
मेरे फतह की//
आने वाली पीढ़ी
नाज़ करेगी हम पर //

कितनी ताकत है
तुम्हारे बर्फ में
ज़रा इन आधुनिक कचड़ो को
गला कर तो दिखाओ //
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प्रकृति से खिलवाड़ तो हम नहीं करना चाहते परन्तु जाने -अनजाने बहुत साड़ी गलतियां हम कर बैठे है / हिमालय फतह करने के दौरान हम ढेर सारा कचड़ा रास्ते में छोड़ते जा रहे है /
वर्ष २००८ के जुलाई -अगस्त में मैं नेपाल का प्रमुख पर्यटन केंद्र "पोखरा " गया /पोखरा के हिमालयन संग्र्लाय जो पोखरा एअरपोर्ट के सामने अवस्थित है , में जाकर आप बिना हिमालय चढ़े ,उसके सारे रंगों ,प्राकृतिक विविधताये ,हिम मानव और नेपाल की पूरी भाषा और संस्कृति से रूबरू हो सकते है /
मैं नेपाल सरकार को धन्यबाद देना चाहता हूँ जो अभियान चलाकर ईन कचड़ो को हटाने का कार्य कर रही है ,जिनमे से कुछ कचड़े इस संघ्रालय में भी रखे है

रविवार, 9 जनवरी 2011

भरपाई

बह चुकी है
केंद्र सरकार का खजाना
घोटालों की बाढ़ से //
भरपाई का एक सुझाव है मेरे पास
सरकार को सलाह देना कोई गुनाह तो नहीं //

सरकार मोटर -गाडी पर टैक्स लगाती है
अब पैदल चलने वालों पर टैक्स लगे
प्रदूषित हवा तो सब श्वास लेते है
शुद्ध हवा लेने वालों पर टैक्स लगे //

पक्षियों की कलरव
नदियों /झरनों की भाषा
सुनने /समझने वालों पर टैक्स लगे
हंसने /मुस्कुराने वालों पर टैक्स लगे //

उन कवियों /लेखकों /मिडियाकर्मियों पर
भारी -भरकम टैक्स लगे
जो सच बोलते और लिखते है
उन पर भी टैक्स लगे
जो सच जानना चाहते है //

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले न मिले
मगर सभी बिहारी मजदूरों पर टैक्स लगे
जो सत्तू खोर है //

आशा है ...
योजना आयोग इस पर गहन विचार करेगा
इतना टैक्स लगने के बाद
नेता लोग कितने भी घोटाले करे
देश का जी ० डी० पी ० प्रभावित नहीं होगा //

बुधवार, 5 जनवरी 2011

बादल (बाल -कविता )


सूख चूके है ताल -तलैया
और सुखी हैं नदियाँ
गर्मी से हैं सब पागल
जल बरसा नभ के बादल //

ज्येष्ठ की तपती गर्मी ने
जल को भाप बनाया
और पवन के झोंके ने
तुम्हें दूर -दूर फैलाया
मन पंक्षी उड़ता है
देख तुम्हारा रंग श्यामल
जल बरसा नभ के बादल //

तुम बिन सूखे बड़े जलाशय
पनबिजली की हो गई छुट्टी
सूख गई है घास खेत की
और धूल उड़ा रही मिटटी
घास बिना गैय्या है भूखी
और सब किसान है घायल
जल बरसा नभ के बादल //

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

हंसने के पीछे का राज


हँसी नहीं आ रही है
कई सालों से मुझे
भूल गया हूँ
कब हंसा था खिलखिलाकर पिछली बार //

हास्य -क्लब ज्वाईन किया
वहाँ तो लोग
हँसते कम है
दांत निपोरते ज्यादा है //

सम्बन्धियों के यहाँ गया
सोचा हंस लेगे सब मिलकर
मगर ...
हंसी नाम की चिड़ियाँ उड़ चुकी थी //

हंस कर स्वागत करते है
दुकानदार ....जब सामान खरीदता हूँ
एजेंट .....जब पालिसी लेता हूँ
गर्ल फ्रेंड ....जब पार्टी लेती है
पत्नी.... जब गहने खरीदना हो
मित्र .... जब उधार लेना हो //

क्या हंसी .....
अब व्यवसाय बन चुकी है //

मेरे बारे में