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रविवार, 31 अक्तूबर 2010

दिलासा

दिलासा
एक दवा है
शब्दों की दवा
जिसमे कोई केमिकल नहीं ॥

खत्म हो जाती है
कर्मचारियों की हड़ताल
बंद हो जाता है
छात्र -आन्दोलन
क्षण में बदल जाता है
एक बच्चे का रुदन
मुस्कराहट में
जब पिलाई जाती है
दिलासा की एक घुट ॥

रुक जाता है
विधवा विलाप /उग्र -प्रदर्शन
नेता पुनः वोट मांग लेते है
दिलासा की दवा पिला कर
यह दवा
मानो राम -वाण हो ॥

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

भूजा

भूंजा
आग पर
पकाया हुआ अनाज
इसमें नहीं होते
वसा /नमी /प्रोटीन और खनिज
जीभ को तो भाती है
मगर ......
शरीर को ऊर्जा नहीं देती ॥

आज हम
रिश्ते बनाते है
ठीक भुन्जे की तरह
जो दिखने में
आकर्षक तो हैं
मगर उर्जावान नहीं ॥

पगडंडी

आज जिन रास्तों पर
हमने बनाई
चमचमाती सड़के
कभी वह पगडंडी थी
जो हमारे
पुरखों के पदचिन्हों से बना था ॥

काश .....
हम चमका देते
उनके बनाए
सभी पगडंडीयो को
जो इंसान को
इंसानियत की मंदिर तक
पहुंचाते थे ॥

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

बबूल और मैं

मैं एक पौधा था
नर्म कोमल
टहनियाँ थी मेरी
लोग आते
तोड़ लेते मेरी टहनियाँ
बना
लेते दातून
जीना मुश्किल था मेरे लिए

मेरे बगल में
कांटो से भरा एक बबूल भी था
उसने कहा
मर जाओगे जल्द ही
जीना है तो
पैदा कर लो
अपनी टहनियों में कांटे

सच में .....
जब से मैंने कांटों की
चादर ओढ़ी
बड़ा शकून है
मगर क्या
ये अच्छी बात है ?

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

चम्मच

पढ़ा था .....
नहीं निकलती घी
सीधी अंगुली से
कोशिश मैंने भी की
असफल रहा ॥

मैंने भी खाई थी कसम
घी निकालूँगा
बिना अंगुली टेढ़ी किये ही
और फिर
चम्मच ने काम आसान कर दिया ॥

क्या आप से भी घी नहीं निकल रही
हर जगह मिलते है
ऐसे चम्मच
हर काम करने में सक्षम
जैसा काम ,वैसा दाम ॥

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

फूल और मैं

मैंने फूलों को तोड़ा
सुखा दिया रखकर उसे
किताबों के दो पन्नों के बीच
फिर पंखुड़ी -पंखुड़ी अलग कर दी
फिर पैरो से कुचल दिया ॥
मगर ....
खुशबू नहीं मरी ॥

एक मैं हूँ ..दोस्तों
किसी इंसान के
ज़बान से शब्द फिसले क्या
तूफ़ान मचा देता हूँ
तुरंत अपने को
हैवान बना लेता हूँ ॥

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

मैं भी जड़ बनूगा


थकती नहीं
पेड़ की जड़ें
पानी की खोज में
छू ही लेती है
भूमिगत जलस्तर ॥
मरने नहीं देती
अपनी जिजीविषा ॥


बखूबी जानती है वह
हर पत्ते को
हरियाली ही देना है
उसका काम ॥

अब .....
नहीं थकूगा
मैं भी जड़ बनूगा॥

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

मैं माहिर हूँ ....

रात -दिन
लगा लगा रहता हूँ मैं
तोड़ -फोड़ में ॥
कभी बातों को
कभी वादों को
तो .....
कभी किसी का दिल तोड़ता हूँ ॥

कितना सरल होता है ....
तोडना
माँ -पिता के सुनहले सपने
दोस्ती का मजबूत धागा
अग्नि का सात फेरा
और धर्म का घेरा ॥

जोड़ना बड़ा कठिन है
और मैं ....
जोड़ने में नहीं
तोड़ने में माहिर हूँ ॥

शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

शरीफ दिखने का पाखण्ड

मैं हूँ ....
अंदर से बदमाश
भले ही शरीफ दिखता हूँ
यों कहिये ...
शरीफ दिखने का पाखण्ड करता हूँ ॥

मेरे राह के रोड़े है
मिट्ठी भर ईमानदार
पुलिस /सरकारी पदाधिकारी और समाज ॥

समाज से तो मैं सलट लूंगा
आज कल लोग
खुद -व -खुद डरते है हमलोग जैसों से
जैसे ही मेरे पास
इन ईमानदारों के
खरीदने लायक पैसा हो जाएगा
कमीनो की दुनिया में
शायद ....
मेरा नाम अव्वल होगा
ऐसा मत सोचिये
मैं अकेला हूँ
मेरे समर्थक बहुत सारे है ॥

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

शाश्वत संगीतकार


प्रभु !!!
आपसे बड़ा संगीतकार कोई नहीं
आपने दिया संगीत
शंख में
कलियों के चटखने में
बांस की बनी फट्ठियो में
और सूखे पत्तों में भी ॥



आपने दिया संगीत
बन्द लवों में
बच्चो की निश्छल खिलखिलाहट में
बेटी की विदाई में
एक माँ का रुदन संगीत ही तो है ॥

मनुष्य ने आपके संगीत को
नहीं समझा प्रभु
अपनी उपलब्धियों पर
ताली तो वह ,बजाता है
पर नहीं जानता
हाथो से बजी ताली को भी
संगीत आपने ही दिया
आप शास्वत संगीतकार है ॥

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

भगवान् से एक प्रश्न

मनुष्य .....
पत्थरो में तिलक लगा
उसे भगवान् बना देता है
फिर बंद कर देता है
छोटे से कमरे में ॥

प्रभु .....
आप तो कण -कण में है
आपने ही सारी सृष्टि रची
छोटे से कमरे में
आपको तकलीफ नहीं होती प्रभु ।

मनुष्य ने ऐसा क्यों किया
कभी आपने सोचा प्रभु

क्या आपको वह अपनी तरह
निष्ठुर समझाता है
क्या मनुष्य सोचता है
अगर आप स्वछन्द घुमे
तो इंसान की तरह
हो जा सकते है आप भी
पत्थर -दिल ॥

मैं भी ना ....

धुम्रपान ....
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कैसे
समझाता हूँ बच्चो को विस्तार से
भय दिखता हूँ
कैंसर का
फिर कुछ ही देर बाद
मैं स्वम धुम्रपान करता हूँ
बच्चो के सामने ही ॥

बच्चो के बैग से
नैतिक शिक्षा की किताब
निकालता हूँ /शौक से
प्रेम /भाईचारा /प्यार /देशभक्ति का
पढ़ाता हूँ पाठ
फिर तुरंत बाद
नाले की समस्या को लेकर
पड़ोसियों से करता हूँ
गाली -गलौज ॥

मैं भी ना ......
भाषण देना/ जितना आसान
निभाना /उतना ही मुश्किल ॥

बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

मैंने माँ को बेच दिया

मुझे क्षमा करना
मेरे खेत
मैंने तुम्हें बेच दिया
एक शराब बनाने वाली कंपनी के हाथों
उसका मालिक कह रहा था
करोडो का राजस्व देगा वह सरकार को
भारतीयों को अब दूध नहीं
मदिरा भाने लगा है

दो ही माँ होती है सबकी
एक जन्म देने वाली
और एक अन्न देने वाली
सच पूछो तो मैंने
तुम्हें नहीं
अपनी माँ को बेचा

रम गए है मेरे बच्चे
शहर के चकाचौध में
गाँव नहीं आना चाहते
कहते है ...
आप तो पके आम हो

काश !!
मेरे बच्चे गाँव लौट पाते

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

अब ताली नहीं, ताल ठोकिये

मंच के भाषणों से
निकलती है लुभावनी बातें
मानो पटाखों से निकलती हो
रंग -बिरंगी रौशनी
शोर मचाती है
कर्णप्रिय लगती है
लोग तालियाँ बजाते हैं ॥

फिर ....
मंच के सारे वादे/कसमे
बुझ जाती है
पटाखों की तरह
बिना अग्निशामक यंत्र के ॥

मित्रो ...
अब समय आ गया है
तालियाँ बजाने की नहीं
ताल ठोकने की ॥

छाता

छाता
उसके काले होने पर
मत जाईये
सोख लेता है
धूप
चुपचाप ॥

वो देखिये
अनजाने में भी
साथ हो लिए
एक छाते के अन्दर ॥

माखन चोर ने भी
बनाया था छाता
गोवर्धन पर्वत का
अपने सखाओ को
बचाने के लिए ॥

हमें भी
बनना चाहिए
एक -दुसरे का छाता ॥

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

सिर्फ एक फूल नहीं है कमल

कीचड़ में खिला
सिर्फ एक फूल ही नहीं है कमल
गुदड़ी में पैदा होते है लाल
इसकी है एक बानगी
देखते ही बनती है
गरीबी में इसकी सादगी ॥

नहीं आता माली उसके पास
घास निकालने
नहीं डालता खाद /दवाई
फिर भी वह खुश है
क्योकि वह
लक्ष्मी जी का चहेता है
उन्होनें उसे दिया है
स्वास्थ्य धन
न कोई चोर चुराएगा
न कोई भाई बांटेगा
इसीलिए तो ......
जी भरकर सोता है रात में
अपने दुश्मन भौरे के साथ ही ॥

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

अजगर

जनसंख्या रूपी अजगर
आप मेरा प्रणाम स्वीकार करे ।
प्रभु .....
आपको क्या भोग लगाऊ
आप न शाकाहारी है /न मांसाहारी
निगल जाते है /किसानों का
हजारों एकड़ भूमि प्रति वर्ष ॥

आपकी विशालता से
मैं ही नहीं /सब भयभीत है
सर्वशक्तिमान नेता भी चुप है
किस पार्टी की शामत आई है
जो आपको मारने का
बनाए चुनाबी मुद्दा ॥

चीन के लोग बदमाश है ,प्रभु
अंकुश लगा / कद छोटा कर रहे है आपका
आप भारत में बेख़ौफ़ रहिये
बड़े दयालु है भारतीय
हर चीज में भगवान् देखते है
काटने वाले सांप को भी
प्रेम से दूध पिलाते है ॥

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

मुझे लेमनचूस नहीं ,चाकलेट चाहिए

बड़े -बुजुर्ग कहते है ...
पहले का ज़माना और था
देखा -देखी नहीं था
लोगों को थोड़े में संतोष था
बच्चे /जवान /बूढ़े सभी
लेमनचूस में मान जाते थे ॥

मगर ...
आज हर कोई
कुछ भी करने को है तैयार
उसे लेमनचूस नहीं
उसके सर पर चढ़ा है
चाकलेट खाने का बुखार ॥

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

सत्य कब्र से भी निकलकर दौड़ता है

राम थक चूके थे
रावण को बाण मारते -मारते
विभीषण ने बताया
उसकी नाभि में तो अमृत है
राम ने अमृत घट फोड़ दिया
रावण मारा गया ॥

तुम भी थक जाओगे
मेरे दोस्त !!!
सत्य को मारते -मारते
क्योकि ....
सत्य रूपी मानव के
अंग -अंग में अमृत -कलश है ॥

अगर , सत्य को
जिंदा भी दफ़न कर दोगे
मेरे दोस्त ... तो वह
कब्र से निकलकर भी दौड़ने लगेगा ॥

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

प्यार एक चुम्बक है


प्यार एक चुम्बक है
मेरे दोस्त !!!
लोहे के चुम्बक से अलग ॥

हर दिल के
एक कोने में पड़ा रहता है
प्यार का चुम्बक
जैसे कोई सुसुप्त ज्वालामुखी ॥
जब जागता है
खीच लेता है
मिटटी के तन को
और उड़नेवाले मन को ॥

अगर काम न कर रहा हो
प्यार का चुम्बक
बढ़ाना चाहते हो इसकी/ चुम्बकीय शक्ति
तो इसे रगड़ो
मुहँ के मीठे बोल से
परोपकार के ढोल से॥

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

अब डरता नहीं , डराता हूँ

बच्चा जब जन्म लेता है
माँ की छाती को रौंदता है
पिता के कंधों पर दहाड़ता है
सच माने ...वह किसी से नहीं डरता ॥

फिर बच्चा बड़ा हो जाता है
होश संभालता है
माँ से डरने लगता है
पिता से डरने लगता है
गुरु जी से डरने लगता है
धर्म से डरता है ॥


फिर एक दिन
वह परिपक्व हो जाता है
अब वह नहीं डरता
माँ से /पिता से /धर्म से
बल्कि वह
सबको डराने लगता है ॥

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

रास्ते

युवा हूँ ...
जिस जगह खड़ा हूँ
रास्तों की गुत्थमगुत्थी
शुरू होती है वहाँ
कुछ रास्ते छोटे है
कुछ बहुत लम्बे
चुनना है सिर्फ एक
अपने लक्ष्य तक पहुचाने के लिए ॥

तो सुनो ...मेरे दोस्तों
अपने आपको तौलो
हर कसौटी पर
फिर चुनो अपना रास्ता
नहीं तो ....
निढाल हो गिर जाओगे
बीच रास्ते में ही ॥

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

तलहट्टी में छिपी यादें

यादें अदृश्य हैं
फिर भी जुडी हैं मन से
ठीक वैसे ही
जैसे इन्द्रियाँ जुडी है तन से ॥

दुसरे इन्द्रियो की तरह
यादें कुछ मांगती भी नहीं हैं
खाने को /पीने को
बस छुपी रहती है
दुबकी रहती है
वर्तमान की तलहट्टी में ॥

जब वर्तमान रेगिस्तान बनने लगता है
तो कभी मखमली दूबों पर चलने वाली यादें
तलहट्टी से बाहर निकल
आगोश में आने लगती है
फिर लगता है
यादों का साथ न छोडू ॥

यादें ....
मन को हल्का कर देती है
नई ऊर्जा भर देती हैं
ताकि हम
सामना कर सके
वर्तमान के रेगिस्तान का ॥

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

फुलझड़ियाँ

-------( १)-----------
छलक
कर थोडा सा शराब
जाम से गिरने को आया
मुझे देख कर
थोडा सा नकाब आपने ज्यो उठाया ॥

-------( २)-----------
मुस्कुराओ .....
मगर दूर से ही
आगोश में आकर तेरा मुस्कुराना
मानो....
आग में घी डालना ॥

--------( ३)----------
तुम्हें देखकर / सूरज ने कहा
बहुत दिनों बाद आया समय /मनाने का जस्न
ऐ बादलों दूर हटो / देख लेने दो
अपने यार का गदराया हुस्न ॥

---------( ४)------------
ग्रेनाईट सा कड़ा मेरा दिल
मोम की तरह पिघल गया
मुंह से बात न हुई तो क्या
दिल से दिल तो मिल गया ॥

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

बापू !..मैंने आपको बदनाम नहीं किया

मेरे प्रिय बापू ....
मैं नौकरशाह हूँ
अंग्रेजों ने अंग्रेजियत सीखा दी
चमचमाती कुर्सियों पर बैठता हूँ
लाल -बत्ती वाली गाडी में घूमता हूँ ....
सब लोग मुझे भ्रष्ट कहते है
घपलेवाज कहते है
गलत भी नहीं कहते लोग ॥


मगर ....
मैंने आपको बदनाम नहीं किया बापू
हटा दी थी मैंने
आपकी तस्वीर /अपने कमरे से
जब भेजी थी फ़ाइल
घोटाले /घपले की मंत्री ने
मुझ से हस्ताक्षर कराने ॥

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

किसानों ने हमें शाकाहारी बनाया

पहले भी थे भगवान्
आज भी हैं /कल भी रहेगे
मगर .....
पहले अन्न नहीं थे ॥

हमारे पूर्वज निर्भर थे
जानवरों की माँस पर
भगवानो /देवियों पर भी
माँस का भोग लगाया जाता होगा
आज भी जारी है ॥

फिर किसानो ने
पैदा किया अन्न
हम शाकाहारी बन गए॥

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

खिला अमन का फूल

साठ साल पहले
रोपा था हमने
धर्म -निरपेक्षता का एक अजूबा पौधा
अपने संविधान की उर्वर भूमि पर
सींचा उसे सब देशवासीयों ने
प्रेम /भाईचारा /सौहार्द के जल से
अब उसमे खिले हैं
शांति और अमन के फूल ॥
आओ , दुनियाँ वालों
थोड़ी सी खुशबू
तुम भी ले लो ॥

मेरे बारे में