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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

मैथेमेटिक्स


मैं इंजीनियर हूँ मेरे दोस्त!
मेरा मैथेमेटिक्स भी ठीक है
मगर मैंने जिंदगी का गणित नहीं सीखा //


कास्ट फैक्टर
मैनेज सिस्टम
नोटों के चुम्बकीय गुण
नहीं पढ़ा मैंने ...
मैंने नहीं सीखा
झूट-फेरब और
चापलूसी का समीकरण हल करना
बस यही मार खा गया दोस्त//

बचपन में सुनी थी एक कहानी
एक नदी दस फिट गहरी थी
गणितज्ञ ने गहराई का औसत निकला
औसत चार फिट aaya ...
नदी पार करने लगा
वह नदी में डूब गया //
तो दोस्तों !
जिंदगी जीने का गणित सीखो //

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

पर्दाफाश


कुहू-कुहू सुन झूमे मन
जब बसंत है आता
लोभ का चादर जब मैं ओढू
मेरा विवेक मर जाता //

आंच आता जब मेरे स्वार्थ पर
मैं तिल का ताड़ बनाता
बात -बात पर मित्रों का मैं
निन्दा -रस पान कराता //

रुपयों -पैसों की खातिर मैं
छल की तलवार चलाता
हार प्रतीत होने पर
तुरंत ही शीश नवाता //

माँ -पिता भी गुरु तुल्य है
इस बात को मैंने झुठलाया
आत्मा-शांति करने उनका
'गया ' में पिंड -दान करवाता //

जब भी आगंतुक आता
मीठी बातों की छौक लगाता
इज्जत ढकने को खातिर
मैं झूठ का लेप लगाता //

जब देखू कोई नार सुंदरी
मैं मंद-मंद मुस्काता
शादी का प्रलोभन दे मैं
नित नए-नए रास रचाता //

मेरी बातों में न दम है
न किये गए पापों का गम है
अपने कुकृत्यों को धोने
मैं गंगा रोज नहाता //

मुह में राम ,हाथ में छुरी
यह निति अब मैं अपनाता
नेता और पुलिस देखकर
अब नहीं कभी घबराता //

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

बसंत के बहाने


खिलखिलाने ,गुदगुदाने का मौसम बसंत है
जीवन में खुशियाँ लाने का, मौका अनंत है //


न्याय की कुर्सी पर बैठकर , ईमान मत बदलो
झूठ,फरेब ,धोखा करने का मौका अनंत है //

राम अमर हो गए, जिन्होनें चख लिया जूठा बेर
दोस्तों ,गरीबों को गले लगाने का मौका अनंत है //

खूब फूलते-फलते है दोस्तों , पापी इस देश में
क्योकि पापों को धोने को ,यहाँ नदियाँ अनंत हैं //

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

रावण आपके बगल में है /


पहले सिर्फ लंका में एक ही रावण था । आइये देखते है .... आज के रावण के विभिन्न रूप
१ दोस्त ही रावण निकला ,अपने दोस्त की ही कुछ रुपयों के लिए हत्या कर दी
२ युवती का प्रेमी ही रावण निकला , यौन शोषण कर प्रताड़ित किया , फिर हत्या कर दी
३ कुछ रावण A T M के पास घूमते है , मौका देखते ही आपके रूपये साफ़ कर लेते है
४ कुछ रावण कानून में छेद खोजते है , पकडे जाने पर उसी छेद से निकल भागते हैं
५ कुछ रावण गलत काजजात पर बैंक से लोन लेते है , लेकर रफ्फु चक्कर हो जाते है
६ कुछ रावण दुसरे की जगह बैठकर परीक्षा देते है
७ कुछ रावण परीक्षा का पेपर लिक करवाते है
८ कुछ रावण नकली दवा बनाते है
९ कुछ रावण नकली नोट छाप कर अपने देश की अर्थव्यवस्था से खेलते है ।
१० कुछ रावण , रुपयों के लिए ,देश की गुप्त सूचनाएं लिक करते है /
ओह , न जाने कितने रावण मेरे अगल-बगल है ... अब मैं कुछ को पहचानने लगा हूँ /
आप भी पहचानना शुरू करे /

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

आओ कचड़े को हटायें


हम जैसे-जैसे विकसित हो रहे है प्रति व्यक्ति कचड़े की मात्र बढती जा रही है । एक अनुमान के मुताबिक़ अगर प्रति व्यक्ति एक दिन ५०० ग्राम कचड़ा पैदा करता है ... तो भारत में प्रति दिन लगभग 600,000 टन कचड़ा पैदा पैदा हो रहा है । जहाँ तक कचड़ा प्रबंधन की बात है , हम उसमें सफल नहीं हो पा रहे हैं । biodegradableकचड़े से बायो गैस बनाने की योजना टायं -टायं फिस्स हो रही है । फलतः शहरों में कचडों का पहाड़ बनता जा रहा है ।
अब शहरों में ही नहीं , गाँव में भी कचड़े का जमाव कोई नहीं बात नहीं .प्लास्टिक के थैले ने तो नाक में दम कर रखा है । और प्लास्टिक के थैले में सब्जी के छिलके को बाँध कर हम नाले में फेक दे रहे है । नाले तुरंत ही भर जा रहे है और नाले का पानी सड़क पर बसने लगता है । पर्यावरण जनित कचड़े से जहाँ एक हवा प्रदूषित हो रही है , वही दूसरी ओर भूमि की उर्वरा शती में हर्र्ष भी हो रहा है और हम अपने भोजन के साथ जहरीले रसायनों को निगल रहे है ।
नदियों को गन्दा करने का मतलब है ... पुरे कृषि को प्रदूषित करना क्योकि अगर हम नदियों में कचड़ा डालते है ... तो न केवल मछलियाँ ही प्रभावित नहीं होती , बल्कि सिंचाई के माध्यम में हामारी फसलों में जहरीले
रसायन प्रवेश कर जाते हैं ।
अब सवाल है हम क्या करे...
एक आम आदमी कचड़े को कम करने में मद्दद कर सकता है ...
१ सब्जियों के छिलके को प्लास्टिक के थैले में बाँध कर नाले में न डालें
२ बिस्कुट या अन्य खाद्य सामग्रियों के प्लास्टिक कवर को साप्ताहिक रूप से जमा से जला डाले
३ जहाँ छोटे फैक्ट्री है , वे कंक्रीट का एक चैंबर बना ले और कचड़ा उसी में डाले साथ ही इसvermi कम्पोस्ट में बदल डालें
४ vermi कम्पोस्ट बनाने के लिए आजकल स्प्रे बैक्टीरिया मिलता है /

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

बसंत कब घबराता है /


हाथों में फूलों को लेकर
जब तुम मुस्काती हो
तब सावन मुस्काता है //

नयनों में काजल भरकर
जब पलकें गिराती हो
तब भादों शरमता है //

गोरी बाहें जब हवा में झूलें
और दुपट्टा मुझ को छू ले
तब बसंत घबराता है //

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