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रविवार, 29 अगस्त 2010

अपने गाँव नहीं जायेंगे आप

मैं गाँव जा रहा हू ...
शायद आप हँसे ॥

सिखाना चाहता हू
किसानों को
बेकार पड़े गोबर
और पेड़ की सूखी पत्तियों से
जैविक खाद बनाना ॥

भू -गर्भ जल की कमी से
चिंतित है अपना देश
अभियान चलाना चाहता हू
रेन -वाटर -हार्वेस्टिंग का
ताकि किसान
भैसों /गायों को धोने में
बागवानी में
इस्तेमाल करे वर्षा जल ॥

गाँव के तालाब
जो शौच स्थल बन गया है
उसकी जल -कुम्भी निकालकर
सबको सिखाना चाहता हू
सहकारी मछली पालन
ताकि मेरे प्रदेश को न मगानी पड़े
आंध्र -प्रदेश से मछलियाँ ॥

सिखाना है मुझे
कैसे वो देख पायेगे
इन्टरनेट पर अपने उत्पादों के भाव
ताकि स्थानीय व्यापारी न करे शोषण ॥

और ......
माँ से भी पूछ लूँगा
कैसे चलता था मैं
इन मिट्टियों में घुटनों के बल
और अपने बचपन की शरारतें
सुनकर
जी लूँगा एक बार फिर से अपना बचपन ॥

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