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मंगलवार, 27 मार्च 2012

संतोषम परम सुखम


देख तुम्हारी भरी जवानी , मैं क्यों बहकूँ
हो फूल भवरे की तुम , फिर मैं क्यों चहकूं //

खुश हूँ अपने घर में ,माता-पिता के संग
देख तुम्हारी महल अटारी , मैं क्यों तरसूं //

मेहनत की सूखी रोटी , लगती है मीठी
देख तुम्हारा हलवा-पुआ , मैं क्यों तडपूं //

हर आंसू में तुम बसते हो , ऐसा मैंने पाया
मंदिर में तुम्हें खोजने , फिर मैं क्यों भटकूँ //

9 टिप्‍पणियां:

  1. अंदाजे तड़फ.....वाह , सुन्दर भाव.

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  2. देख तुम्हारी भरी जवानी , मैं क्यों बहकूँ....सही कहा

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  3. हर आंसू में तुम बसते हो , ऐसा मैंने पाया
    मंदिर में तुम्हें खोजने , फिर मैं क्यों भटकूँ //

    ....बहुत सुंदर प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  4. वाह !!!!! बहुत सुंदर रचना,क्या बात है,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,

    MY RESENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

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  5. बेहतरीन अभिव्यक्ति,... plz give me your pen sir jee...

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