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रविवार, 28 अक्तूबर 2012

एक साधै .. सब सधे


वे ..
अपने गाँव के बारे लिखते थे
पड़ोस के बारे में लिखते थे
एक पार्टी के बारे लिखते थे
क्या खूब लिखते थे
जम कर लिखते थे
जो लिखते थे
गहराई में जाकर लिखते थे//


फिर .. सब राज्य के बारे में लिखने लगे
पुरे देश के बारे में लिखने लगे
इतिहास/ भूगोल / समाजशास्त्र
कला/खेल/साहित्य पर
कृषि /वित्त /बेरोजगारी  पर लिखने लगे
खूब लिखने लगे
अब उनको पढना
समुद्र के नीचे , मोतियों खोजने जैसा नहीं
बल्कि
पानी के सतह पर चलने जैसा है

5 टिप्‍पणियां:

  1. पानी के सतह पर चलने जैसा है अभिनव अभिव्यक्ति

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  2. वाह!
    आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

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  3. बहुत सटीक व्यंग्य है दोस्त .देखते हो! देखते ही देखते वे विदेश मंत्री पद पा गए .कलम से लहू पर आगये .

    दूसरा ,अब उनको पढ़ना .........पानी पे चलने जैसा है वाकई भाई साहब ,बहुत खूब रचना है ,बधाई .

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  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये ,,,,बबन जी बधाई,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

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  5. हर विषय का ज्ञान...सतही ही हो सकता है...

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