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बुधवार, 23 मई 2012

आग उगल रही आकाश

( बाल कविता लिखना भी आसन नहीं  होता, मैंने एक प्रयास किया है ) 

तप  रही है  सारी  धरती  
आग उगल रही आकाश //

 क्या पीयेगें ,   वन के प्राणी 
कहाँ टिकेगें , सारे  नभचर 
सिकुड़ गयी है पेट सभी की 
सूख गयी है अब सारी  घास //

सूख  गए सब ताल- तल्लैया 
और मर गयी मछली   रानी 
दादा-दादी हैं सब लथ -पथ
अब मैं जाऊ किसके  पास //

16 टिप्‍पणियां:

  1. vednaa se bhare shabd,,,,,baban ji atyant maarmik kavitt .

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  2. शुक्रिया सुमन जी .... हौसला आफजाई करती रहे

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  3. बब्बन जी ... बाल कविता ... कितनी सहज होनी चाहिए आज पता चला

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  4. प्रशंशनीय प्रयास .कम लोग ही लिख रहें हैं बाल गीत .

    लिखो भैया बाल गीत ,
    करो सबसे प्रीत ,
    छोड़ लड़ाई झगडा ,
    बनो सके मीत .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    बुधवार, 23 मई 2012
    ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )
    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    यहाँ भी देखें जरा -
    बेवफाई भी बनती है दिल के दौरों की वजह .
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

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  5. जिस दुखदायी स्थिति वर्णन आपने कविता के माध्यम से किया है, यह दुखद स्थिति के सृजनकर्ता और कोई नहीं हम सब ही हैं... स्वार्थ में वशीभूत आखें भविष्य के इस स्थिति को देख ही नहीं पायी आज हम दुखी हैं... प्रकृति व्यक्ति और सभी प्राणी के सुख-समृद्धि के लिए सब कुछ दिया पर विवेकहीनता हमें आज इस स्थिति में खड़ा कर दिया है की हम खुद से पूछ रहे हैं कि अब कहीं जाएँ!!!

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  6. बहुत सुन्दर ....मन खुश हो गया पढ़ कर

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  7. KHUBSURAT BAAL GEET. BHW PRADHAN KAM SHABDON ME PRAKRITI KA SUNDAR WARANAN
    BADHAI SWIKAREN.

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  8. आभार शेखर जी ... आशा है मेरी बाल-कविता सबका मोहेगी

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  9. सुंदर.......सीधी.......सरल................

    बधाई.
    अनु

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  10. सूख गए सब ताल- तल्लैया
    और मर गयी मछली रानी
    दादा-दादी हैं सब लथ -पथ
    अब मैं जाऊ किसके पास //

    प्रकृति का सुन्दर चित्रण.

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