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शनिवार, 6 अप्रैल 2013

हे! कामिनी



हे!
 कुमुदनी सी खिलने वाली
हरश्रींगार  सी हसने वाली
कचनार सी लचकने वाली
अपनी अंगडाई से
कली को फुल बना देने वाली
सौन्दर्य की हरीतिमा से लदी हुई
अनुपम,मनोहारी कामिनी
आपको मेरा प्रणाम ..
आप अगर अच्छी नहीं लगती
तो बस ....
सास-ससुर को ताने मारते वक़्त

7 टिप्‍पणियां:

  1. ज़बर्ज़स्त , लिखा आपने भईया ......
    आप अगर अच्छी नहीं लगती
    तो बस ....सास-ससुर को ताने मारते वक़्त ..... मरहबा !!

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  2. बहुत ही मनोरम प्रस्तुति,आभार.

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  3. कुमुदनी सी खिलने वाली
    हरश्रींगार सी हसने वाली
    कचनार सी लचकने वाली
    अपनी अंगडाई से
    कली को फुल बना देने वाली
    सौन्दर्य की हरीतिमा से लदी हुई
    अनुपम,मनोहारी कामिनी
    आपको मेरा प्रणाम ..

    आदरणीय आपने तो कामिनी को जल संसाधन विभाग का पूरा पानी सिचकर पल्लवित कर दिया है अब वो सास को ताने मारेगी नहीं तो आपके साथ चुहलबाजी करेगी भुगतिए ...

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  4. बिल्कुल दुरुस्त फरमाया है रमाकांत जी ने....पानी दे देकर सिंचित कर दिया है तो भुगतना तो पड़ेगा ही...LOL....पर भाया इतनी प्यारी सी कविता कैसे कर लेते हो ...हमें भी सिखा दो

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