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बुधवार, 20 अप्रैल 2011
नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी
हम- तुम मिलते थे
दूसरों की नज़रों से बचते -बचाते
कभी झाड़ियों में
कभी खंडहरों के एकांत में
सबकी नज़रों में खटकते थे
फिर एक दिन ...
घर से भाग गए थे
बिना सोचे-समझे
अपनी दुनियाँ बसाने //
नीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी
देती थी तेरी हर अदा
कितना अच्छा लगता था
दो समतल दर्पण के बीच
तुम्हारा फोटो रख
अनंत प्रतिबिम्ब देखना
मानो ...
तुम ज़र्रे-ज़र्रे में समाहित हो //
कहने को
हम अब भी
एक-दूजे पे मरते है
एक-दुसरे के साँसों में बसते हैं
एक-दूजे के बिना आहें भरते है
मगर ....
दिल के खिलौने को
हम रोज तोड़ते हैं
क्योकि हम प्यार करते है //
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बहुत ही प्यारी पर मन को अतित और बर्तमान से रुबरु कराती आपकी बहुत ही सुन्दर कविता ! बधाई के लिए शब्द नहिं !
जवाब देंहटाएंBahut sundar smritiyaan aur taaza-haal bayaan kiya hai !!
जवाब देंहटाएंSo great expression Babban Sirji.
जवाब देंहटाएंmajedar
जवाब देंहटाएंniboo ki sansanaati tazagi...ye pyaar to jhaag wala hai...
जवाब देंहटाएंएक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !
जवाब देंहटाएं........ला-जवाब" जबर्दस्त!!
जवाब देंहटाएंनीबुओं जैसी सनसनाती ताजगी
जवाब देंहटाएंदेती थी तेरी हर अदा
कितना अच्छा लगता था
दो समतल दर्पण के बीच
तुम्हारा फोटो रख
अनंत प्रतिबिम्ब देखना
aisa kya...
bade khubsurat shabd peeroye aapne:)
व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
दिनेश पारीक
बबन भाई.... बेहद खूबसूरत.... दो समतल दर्पण के बीच तेरी तस्वीर रखना.... और साथ ही..... दिल के खिलौने को हम रोज तोड़ते हैं क्योंकि हम प्यार करते हैं..... बेहतरीन....
जवाब देंहटाएंआकर्षण
Very Nice ..plz visit My blog= http://yogeshamana.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंbeautiful. keep going on !
जवाब देंहटाएंBahut sundar
जवाब देंहटाएंbadhai aapko
nice ..
जवाब देंहटाएंhttp://shayaridays.blogspot.com
SCIENCE IN POEM... VERY GOOD SIR /
जवाब देंहटाएंएक-दूजे पे मरते है
जवाब देंहटाएंएक-दुसरे के साँसों में बसते हैं
एक-दूजे के बिना आहें भरते है
मगर ....
दिल के खिलौने को
हम रोज तोड़ते हैं
theses lines are also great sir