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सोमवार, 20 दिसंबर 2010

हिसाब














आंखों में आँखें डालकर बोलना
६२ साल तक तुमने क्या किया
वतन झुलस रहा है , मेरे दोस्त
इसीलिए,अब तुमसे हिसाब मांगते है //


आँख न मिलाई,तो हाथ क्या मिलाओगे
जागी ज़नता को,अब कैसे रुलाओगे
मैं तो ठहरा भिखमंगा, मेरे दोस्त
इसीलिये स्विस बैंक का हिसाब मांगते है //

11 टिप्‍पणियां:

  1. अफ़सोस, हिसाब मांगने से कुछ नहीं होगा...

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  2. बहुत सह लिया है उसने ..... अगर जाग गई जनता तो कैसे सुलाओगे..
    बहुत सटीक और तीखा प्रहार..

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  3. आपकी यह सशक्त और सुन्दर रचना
    आज के चर्चा मंच पर सुशोभित की गई है!
    http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html

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  4. आंखों में आँखें डालकर बोलना
    ६२ साल तक तुमने क्या किया
    वतन झुलस रहा है , मेरे दोस्त
    इसीलिए,अब तुमसे हिसाब मांगते है

    एक न एक दिन तो नेताओं को हिसाब देना ही होगा.

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  5. आँख न मिलाई,तो हाथ क्या मिलाओगे
    जागी ज़नता को,अब कैसे रुलाओगे
    मैं तो ठहरा भिखमंगा, मेरे दोस्त
    इसीलिये स्विस बैंक का हिसाब मांगते है.
    Bilkul sahi.
    1. "Think to exit Party basis Democracy".
    2. "Think How politics will become business of losses".

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  6. बहुत खूब ... पर स्विस बेंक का हिसाब नहीं मिलने वाला ... अब तक तो पैसा गायब भी हो चूका होगा....

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  7. बबन जी.........६२ साल से किसी ने नहीं पूछा.....तो अब क्या गारटी है कि ........हिसाब मांगने से कुछ पता चल जाएगा...........नेता चिकने घड़े होते है.........उन्हे कोई फरक माहि पड़ता......पर फिर भी जो हमें करना चाहिए वो करते रहे.........

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  8. वो सुबह कभी तो आएगी … अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"

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  9. हिसाब इतना गडबड है कि दे ही नहीं पाते हिसाब ...

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