मुझे लगता है नदियों का इतिहास मानव के इतिहास से सदियों
पुराना है. प्राकृतिक रूप से वर्षा या वर्फ जिस मार्ग से पिघल कर बहती है, वह
मार्ग ही नदी कहलाती है. नदियों की चौड़ाई या गहराई इस बात पर निर्भर करती है कि
कितने क्षेत्र का पानी प्राकृतिक ढाल से स्वंम बह कर उस नदी में आती है.
मैंने कहीं पढ़ा
है या किसी ने मुझे बताया है कि भादों महीने की अमावस्या को जिस नदी का पानी जितनी
दूर फैला होता है , वह उसकी चौड़ाई कहलाती है. इस चौड़ाई के आधार पर बांध बनने का
कोई मतलब नहीं रह जाता. बिहार का शोक कही जाने वाली कोशी नदी अपने मध्य से दायें
और बांयें 60 किलोमीटर घुमती ( Meandering) थी. वर्तमान में बांध बनाकर कोशी नदी के इस
फैलाव को 7-9 किलोमीटर के बीच रोक दिया गया.
अगर बांधों के
बीच की दूरी कम है तो स्वाभाविक रूप से तटबंधों पर दबाब बनेगा और कमजोर बिन्दुओं
पर यह टूटेगा. अगर हम प्रायोगिक तौर पर तटबंधों को खूब मज़बूत कर दें तो नदी अपना बहाव मार्ग
बढाने के लिए अपने तल को काट कर (Erode) अपनी गहराई बढ़ा लेगी. अर्थात नदी अपने अन्दर
आने पानी को ढोने के लिए स्वम रास्ता बना लेती है.
जल संसाधन विभाग
के अभियंताओं की यह ज़िम्मेदारी है कि हर हाल में तटबंधों को टूटने से बचाया जाए
तथा मुख्य धारा को तटबंध से दूर रखा जाय. इस पुस्तक में बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के बीचोबीच बहने वाली बूढी गंडक
नदी की तेज बहाव से (वर्ष 2021 में )
तटबंधों को सुरक्षित की वास्तविक कहानी है.
इस पुस्तक को पढने से आप जान जायेगे कि जल संसाधन विभाग के अभियन्ता किन
परिस्थितियों से जूझ कर तटबंधों की रक्षा करते है. एक तरह से अभियंता नदियों से
लड़ाई करते है.
कोई भी लड़ाई या युद्ध
अकेले नहीं जीती जा सकती. एक सामूहिक प्रयास ही सफलता का पर्याय होती है, चाहे
लड़ाई नदी से हो या फिर पडोसी देश के दुश्मनों से. दिनांक 10 जुलाई 2022 से 15 अक्टूबर 22 तक बूढी
गंडक नदी के दायाँ और बायाँ तटबंध को
सुरक्षित रखने में जो लड़ाई लड़ी गई, उस लड़ाई में निम्नाकित व्यक्तियों / संवेदकों /एजेंसियों की सहभागिता सदैव अविस्मरणीय रहेगी.
very informative blog...Thank you!!!
जवाब देंहटाएंVery Nice
जवाब देंहटाएं१५ अक्टूबर २०२२ तो अभी आई ही नहीं जी।
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