अकाल ....
एक दिन में नहीं
कह कर आता है ...धीरे -धीरे ॥
बादल रुठ जाते है
जमीन दरारें दिखाती है
कमल कुम्भला जाते है
चिड़ियों को नहीं मिलता अन्न
बगुले को नहीं मिलते कीटें
धान के खेतों में ॥
सरकार कहती है
कोई नहीं रहेगा भूखा
विदेशों से मंगा लिया जाएगा
चावल -गेहू -दाल ॥
क्या सरकार मिटा देगी
रामू काका के चेहरे पर उगी झुरीयां
जो मुनिया की शादी
टल जाने से हो गई है गहरी ॥
क्या सरकार देख पा रही है
सूखने के कगार पर पहुचे तालाबों में
मछलियों की तड़प ॥
क्या सरकार जंगल/जंगलातों के
नदी - तालाबों में पानी भर सकेगी
ताकि प्यास बुझा सके
कौवे /मोर और चिल्काव
सच में दोस्तों !!!
अकाल में सिर्फ अन्न उत्पादन ही नहीं रुकता
रुक जाती पूरी सृष्टी
टूट जाती है
मानवीय रिश्ते और संवेदना ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें