छन-छन कर आती है धूप, जैसे सुराखों से
देख लेता हू आपको कभी भी , अपने खवाबों से ॥
रोग भागती नहीं , खा -खा कर नकली दवाओं से
उम्मीद डूब जाती है ,बिना लक्ष्य के पतवारों से ॥
काले घनेरे बादल देख कर डर जाता हू
खवाबो को ही आगोश में कर लेता हू ॥
आज के बाद से , अंधेरों का मुहं दूंगा सिल
लगे रहे काम में ,तो मिल ही जाएगा मंजिल ॥
छन-छन कर आती है धूप, जैसे सुराखों से
जवाब देंहटाएंदेख लेता हू आपको कभी भी , अपने खवाबों से ॥
बहुत अच्छी रचना, बबन जी
काले घनेरे बादल देख कर डर जाता हू
जवाब देंहटाएंखवाबो को ही आगोश में कर लेता हू ॥
waah pandey ji मिल ही जायेगी मंज़िल
बहुत सुन्दर रचना