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शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

नदी किनारे खेलते बच्चे

मैं खड़ा था ....
गंगा नदी के किनारे
देख रहा था गंगा नदी और
तट पर खेलते बच्चे ॥

वह गंगा में कूदता
फिर निकालता
अपना कमाल दिखाता
फिर हाथ पसार कर कुछ मांगता ॥

उसे निकृष्ट समझाना
भूल थी मेरी ....
अचानक एक नाव डूबी
वह तुरंत कूदा
पांच लोगों को किनारा लगाया
मैं आवाक रह गया ॥

गोताखोर आये थे
जान बचाने नहीं
शवों को निकालने ॥

ओ ..सिर्फ चड्डी पहने बालक
मुझे तुम गर्व है
और तुम्हारी माँ पर भी
जिसने आपको जन्म दिया ॥

5 टिप्‍पणियां:

  1. ईश्वर और मानवता ऐसी चीज हैं , जो गरीबों में ज्यादा पाई जाती हैं.

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  2. बबनजी,
    इंसानियत तो यही कहती है जो आपने लिखा है...
    आपकी लिखावट के लिये जितनी सराहना की जाये काम है...

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  3. Babanji,Insaaniyat kisi ek ki malkiyat nahin hai..aur kisi ko kam samajhna hamari sabse badi bhool hai...afsos hum aisa hi karte rahte hain...salute to the innocence of small kids!!!!

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  4. "कभी कभी बच्चे अपरिपक्व होते हुए भी बड़ो को बहुत कुछ सिखा जाते हैं ......
    बहुत ही भावपूर्ण वृतांत है ये बबन जी ......

    regards

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  5. यही सभ्रांत घरों के सभ्यता एवं संस्कार होते हैं इन्ही में भारत बसता था परन्तु अभी भी चन्द्र मानवीय लोग है जो स्तम्भ हैं जिनसे हमारी सभ्यता, संस्कार एवं संस्क्रती ज़िंदा है I मेरी तो सभी भारतवासियों से यही गुजारिश है की इसी सभ्यता को हर्षो उलासों से फलने व् फूलने का प्रयास करतें रहें एवं स्वयं भी प्रसन्न रहें I प्रिय बब्बन जी आपको बहुत बहुत आशीर्वाद ऐसी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए I

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