followers
शनिवार, 21 अगस्त 2010
बासुरी का मन बदलने लगा है ...
धुप ने मन बनाया था , आपको झुलसाने का
हवा ने मन बनाया था ,आपको फुसलाने का
तूफ़ान ने मन बनाया था , आप को दहलाने का
काले बादलों ने मन बनाया था , आपकी काजल चुराने का
फूलों ने मन बनाया था , आपकी खुशबू छीन लेने का
कमल ने मन बनाया था ,आपकी कोमलता हर लेने का
मोतियों ने मन बनाया था , दांतों की चमक क्षीण करने का
और बासुरी ने मन बनाया था , आपकी सुर -सप्तम चुरा लेने का
मगर ......
मैंने आपको अपना कर
सबके नापाक मंसूबों पर
पानी फेर दिया ॥
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
bahut sunder.....wakai main time to aapne le liya.......
जवाब देंहटाएंshukriya ...alok mittal ji
जवाब देंहटाएंWah Baban ji bahut hi sunder arth purn rachna.............badhai.....
जवाब देंहटाएंHAMESHA KI TARAH SUNDAR WA ARTH PURN PRASTUTI
जवाब देंहटाएंBABAN BHAI ............
बबन जी आपकी कविता बहुत ही सुंदर है, एक ही अर्थ समझ आया, वो यह, कि प्यार यदि सच्चा हो तो सब कुछ अकेला झेल सकता है.
जवाब देंहटाएंबबनजी, इतनी कोमलता के साथ आप ह्रदय के सभी तारों को छेड़ गए कि जब होश आया तो देखा सारा आलम प्यार के रंगों से भरा पड़ा है. बहुत सुंदर कविता है. लिखते रहिये, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबबन जी ......आपने सही कहा ,,,प्यार वो नहीं होता जो मुसीबत में साथ दे .. प्यार वो होता हे जो साथ हो तो कोई मुसीबत ही नहीं आये
जवाब देंहटाएंbahut sahi sarthakta jhalak rahi hai !
जवाब देंहटाएं