मित्रो ...
न कोई लग्न
न कोई मुहर्त
न कोई ब्रह्माण
न कन्या
संविधान प्रदत इस शादी की इस रस्म को
मेरा शत शत नमन ॥
चुनावों के वक़्त खूब होती है
ऐसी शादियाँ ॥
एक मंच होता है /मंडप के नाम पर
पार्टी के नेता होते है / बाराती के नाम पर
पिछली पार्टी को गालियाँ दी जाती है
मंत्रोच्चार के नाम पर ॥
फिर नए पार्टी के नेता
दुल्हे को जय -माल पहनते है ॥
शादी की रस्म समाप्त ॥
आज जो दूल्हा बने
कल फिर तलाक़ ले सकते है
मैंने पूछा एक दिन .....
बोले ...हिन्दू हू
अग्नि के समक्ष थोड़े ही शादी की ॥
कोर्ट क्या करेगा
इन्कैम-टैक्स वाले भी क्या करेगे ॥
वे कहते है
विचारो का मेल ये शादियाँ
मैं कहता हू
टिकेट का खेल है ये शादियाँ ॥
मुझे गर्व है ...
अपने नेताओं पर
नवयुवकों को एक नई राह दिखने का ॥
करारा व्यंग
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं की मौलिकता आपकी विशिष्टता है बबन जी.
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