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रविवार, 8 अगस्त 2010

डल झील का बदरंग होता पानी

ओ ..मेरे कश्मीर के युवा दोस्तों
मेरे बच्चो की शादी हुई है ....
वे बिताना चाहते है
अपनी दुल्हन के साथ
डल झील पर तैरती शिकारे में
दो हसीन राते ॥

वे वादियों में देखना चाहते है
सेवों से लदे डाल
कचनार के फूलों से लदी डालियां
अखरोट से लदे वृक्ष
डल झील ....
जो सुनहला हो जाता है जब
पड़ती है उसपर
पहाड़ो से छिटककर कर आने वाली किरनें ॥

नई -नवेली दुल्हन डरती है
नहीं खोना चाहती अपना सुहाग
और अपना जीवन
जिसे सहेजा गया है बड़े जतन से
न जाने कितने रोग -अवरोधी इंजेक्सन
का दर्द सहा है ...

जाकर क्या देखेगे वे लोग
फिरन के अन्दर रखे रायफल और ग्रेनेड
आगजनी का दमघोटू धुया
हर चौक -चौराहों पर
तैनात बखतरबन्द गाडियां
पता नहीं चलता दोस्त
कौन फियादीन है कौन देशभक्त


दोस्त .....
ये आज़ादी एक भ्रम है
यह पड़ोसियों का माया जाल है
भारत जैसा देश और नहीं कही
मेरे कश्मीर के दोस्त ...
आईये ...
कश्मीर को हम फिर से स्वर्ग बनाए ॥

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