आवाज़ टकराकर लौटती है
पहाड़ो से /दीवालों से
प्रतिध्वनि कहते है उसे ॥
किये गए कार्यों की
अनुगूँज भी लौटती है
टकराकर अंतरात्मा से
अंतर सिर्फ यही है
यह शांत होता है
इसमें आवाज़ नहीं होता ॥
अच्छे कार्यों की अनुगूँज देती है
प्रफुल्लित मन /प्रसन्नचित मन
और लाती है चेहरे पर
तेज /ओज और दिव्य-शक्ति ॥
बुरे कार्यों की अनुगूँज पैदा करती है
एक डर .....
हत्या का /बेईज्ज़ती का /कानून का
एक खौफ ......
कभी न ख़त्म होने वाला ॥
आईये ....
अच्छे कार्यों को आलिंगित कर
अपने भीतर पैदा करे
एक भीतरी शक्ति
यह हमें बनाएगा
स्वस्थ और चिरायु ॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें