followers

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

मैं औरत हू

सच बोलिएगा
पत्नी की बार -बार की फरमाईशों से
मन उबता है या नहीं ॥

आज तीज है
कल हरतालिका
फिर दशहरा
फिर धनतेरस
-----------
कुछ न कुछ खरीदेगी ही मैडम ॥

एक दिन बोल दिया
सहसा मुहँ से निकल पड़ा
क्या करोगी लेकर
सेल्फ साड़ियों से भरी है
जेवर लॉकर में पड़ी है ॥

बोली .....
मैं औरत हू
नहीं मांगती मैं कुछ
मेरे अन्दर की औरत मांगती है
मेरी मांग न हो
तो समझो
मेरे अन्दर का औरत मर चूका है ॥

1 टिप्पणी:

मेरे बारे में