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शनिवार, 21 अगस्त 2010

हम सब मिलकर राखी बांधे

बहनों ने बाँधी राखी
भाईयों की कलाईयों पर
अपनी रक्षा का वचन लिया
भाई के मुंह में मिठाई डाली
ख़त्म हो गया रक्षा -बंधन ॥

मगर ...बात यही ख़त्म नहीं होती
आईये दोस्तों .....
इस बार कुछ नया करे ॥

मैं बांधना चाहता हू राखी
उन शिकारियों की कलाईयों पर
उनके बंदूकों पर भी
उनसे वचन लेना चाहता हू
नहीं चलायेगे गोली
जंगल के राजा बाघ पर
गैंडे पर /हिरनों पर /हाथियों पर
उनकी ......
खाल/सिंग /अस्थियों के लिए ॥

मैं बांधना चाहता हू राखी
इंसान के सबसे अच्छे मित्र
वृक्षों को .....
ताकि वे हमें देते रहे
शुद्ध प्राण वायु -आक्सीजन ॥

मैं बांधना चाहता हू राखी
मजदूरों /किसानों की कलाईयों पर भी
उनसे भी वचन लेना चाहता हू
देते रहेगे सैदव ...अन्न के दाने
पेट भरने के लिए ॥

आशा है ...
आप भी मेरा साथ देगे ॥

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