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सोमवार, 30 अगस्त 2010

बेटी --२ कविताये

(१)
मुनिया ....
रोज सुबह उठती है
बर्तन मांजती है
मात्र दस साल की मुनिया
बना लेती है रोटी
और पिस लेती है चटनी
प्याज .हरी मिर्च और अदरख की ॥

स्कुल से भाग आती है ,मुनिया
खेतों पर काम रहे
अपने बापू को पहुचाने
कपडे में बांधकर
चार रोटियाँ ,चटनी और प्याज ॥

माँ ने उसे दी है
बकरी का बच्चा
उसके लिए भी लाती है ,हरी दूब
माँ ने उससे कहा है
इसे बेचकर बनबा दूंगा एक जेवर
तुम्हारी शादी में ॥

माँ के कहने पर
बंदरों सी उछलती
चढ़ जाती है ,मुनिया
अपने घर के छत पर
रुई के फाहे जैसे चलती है
कही टूट न जाए खपड़ा छत का
तोड़ लाई है हरे -हरे नेनुआं
रात के खाने के लिए ॥

जानते है ....
मुनिया एक बिहारी मजदूर की बेटी है ॥

(२)
दस साल की मेरी बेटी
आज काटेगी केक
जन्म- दिन है उसका
बाटेगी ताफ्फियाँ पूरे मोहल्ले में ॥

रोटी और सब्जी बनाना तो दूर
खा कर बर्तन रख देती है सिंक में
माँ के भरोसे ॥

नहीं लाती बाज़ार से कुछ भी
अभी उम्र ही क्या है ?

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