बहुत दुखित था वह
" मेरी जाती के लोग ही
मेरी रोटी छिनते है "...
मैं स्तब्ध था ....यह सुनकर
क्योकि
बोलनेवाला एक सवर्ण नहीं
बल्कि हरिजन था ॥
वह चिल्ला रहा था
एक मंच के नीचे से
जहा से भाषण होना था
हरिजन एकता के सम्बन्ध में ॥
६२ साल हो जाये आरक्षन के
नहीं मिली नौकरी
मुझे /मेरे पिताजी जी /मेरे दादा जी को
बड़ा ही कारुणिक दृश्य था
वह बडबडा रहा था
आरक्षण के नाम पर
आई ० ऐ ० एस /आई ० पी ० एस /नेताओं के बेटे
लाभ पर लाभ लिए जा रहे है
ये कैसा आरक्षण ...
उसका गला रुन्धने लगा था ॥
सच है उसकी आवाज
समाज की हर घटना ...
प्रभावित करती है हर आदमी को
कोई विरोध का स्वर निकालता है
कोई चुप रहता है
वह आगे क्या करेगा
मैं नहीं जानता
शायद , बदला लेना चाहता है
अपनी जाती के लोगों से ही ॥
नेता जी....
कुछ ऐसा कीजिये...
आरक्षण के तवे पर
सब अपनी रोटी सेक सकें ॥
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