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शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

कागज बिलकुल निरीह है ...

कोरा कागज
स्वच्छ , श्वेत, निर्मल ,पावन
मगर ....
मूक और निरीह ॥

गुदवा लेता है अपने ऊपर
.....प्रेमगीत
.....यश -गाथा
....
स्वागत गान
....
विरह -गान
.....
भाषण और नारे
....क्रांतिवीरो की कहानिया
.....समकालीन साहित्य ॥

गवाह बन जाता है ...
शादी के पवित्र बंधन का
अभिसप्त तलाक का
नियुक्ति पत्र का
त्याग -पत्र का
संपत्ति के बटवारे का
और हाकिम के स्पस्टीकरण का भी ॥


मैं जानता हू ....
मूक और निरीह कागज .....
कुछ नहीं कर सकता ...
इसलिए दोस्तों ...आइये
उनलोगों की कलम तोड़ दे .....
जो लिखना चाहते है
अपने कुत्सित विचार
गन्दा साहित्य ...
और अपहरण के बाद का फिरौती पत्र
जो बोना चाहते है ....
घोटालों के बीज
इन कागजों पर ॥

उनलोगों की कुंची तोड़ दे
जो उकेरना चाहते है
गंदे चित्र ॥

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