लेह से कारगिल तक का राजमार्ग
फिजाओं में घुला था बारूदी महक
हो भी क्यों ना
यह युध्ध तीर -कमानों से नहीं
बोफोर्स्र तोपों का था ॥
अँधेरी रातों में
घावों से रिस रहा था मवाद
शरीर निढाल था
और पैर मानो
लोहे का बना था ....
मिलों तक थकान नहीं था
मगर कान जगे थे
और जब कान जागता हो
तो नींद कैसे आएगी ॥
धुल के गुब्बार
आखों में धुल नहीं झोक पाए
वह नेस्नाबुद करना चाहता था
चाँद -तारे उगे हरे झंडे
और फतह करना
चाहता था जंग ॥
कल सुबह उसे ...
टाईगर हिल पर
तिरंगा जो फहराना था
मेरे सैनिक दोस्त
आप रात में ही शहीद हो गए थे
मगर...आपके साथियों ने
कल सुबह
टाई गर हिल पर तिरंगा लहरा दिया था ॥
दोस्त , मुझे आज पता चला
सैनिक एक आदमी नहीं
एक जज्बा का नाम है ॥
और ऐसे जज्बे वाले हर भारतीय को
मेरा शत -शत नमन ॥
aur is rachna kar ko mera yani ek sainik ka pranam
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