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गुरुवार, 26 अगस्त 2010

पत्नी के नाम एक पति का ख़त

तुम सुन्दर हो
शिक्षित हो
हसीन हो
मोहल्ले में आप सब सबकी प्रिय है ॥
तुम मंदिरों में भी जाती हो
तीज करती हो
नवरात्र करती हो ॥

मगर एक काम गलत कर देती हो
घर की बूढी महिला से
रूखेपन का व्यवहार कर
आपकी सास भले होगी वह
लेकिन , मेरी तो माँ है ॥
तुम भी तो दौड़कर चली जाती हो
अपने मायके
जब सुनती हो
माँ गिर पड़ी फिसलकर बाथ-रूम में ॥

ऐसा कुछ ना करो
कि माँ रो दे अन्दर से ॥
जब मैंने जन्म लिया था
बिजली नहीं थी
जिसे तुम बुढ़िया कहती हो
उनकी हाथों ने
रात भर स्वम हाथ -पंखा कर सुलाया है मुझे ॥

मेरी मानो ....
सिर्फ एक दिन लिए
मन ही मन
बुढ़िया बनकर चिंतन करो ॥

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