
(बीते दिनों की याद प्रतेक के जेहन में किसी न किसी रूप में छिपी रहती हैं । जिस प्रकार फूल की पंखुड़ियां सूख जाती हैं, मगर खुशबू नहीं सूखती उसी प्रकार यादें भी ....)
बीते पल के आँगन में
है रौशनी ज़र्रा-ज़र्रा
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //
मन बचपन हो जाता क्षण में
ऊर्जा सी जग जाती तन में
प्रवाह विद्युत् का रोक न पाता
कैसे भूलूं प्यार तुम्हारा गहरा //
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //
तेरे अधरों का कमल चुराने
तुम्हें यौवन का स्वाद चखाने
पहुंचा मैं रिमझिम सावन में
बच-बच के,तोड़ पुलिसिया पहरा //
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //