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शनिवार, 10 सितंबर 2011

बीते पल के आँगन में


(बीते दिनों की याद प्रतेक के जेहन में किसी न किसी रूप में छिपी रहती हैं । जिस प्रकार फूल की पंखुड़ियां सूख जाती हैं, मगर खुशबू नहीं सूखती उसी प्रकार यादें भी ....)

बीते पल के आँगन में
है रौशनी ज़र्रा-ज़र्रा
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //

मन बचपन हो जाता क्षण में
ऊर्जा सी जग जाती तन में
प्रवाह विद्युत् का रोक न पाता
कैसे भूलूं प्यार तुम्हारा गहरा //
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //


तेरे अधरों का कमल चुराने
तुम्हें यौवन का स्वाद चखाने
पहुंचा मैं रिमझिम सावन में
बच-बच के,तोड़ पुलिसिया पहरा //
कोमल पंखुड़ियां हैं सूखी
फिर भी खुशबू कलश भरा //

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

ईश्वर व्यापारी नहीं है ///


आदमी ने बनाया
बहुत सारे निर्जीव यन्त्रं
फिर खोल दी दूकान
उनके कल-पुर्जों की //

ईश्वर ने बनाया
अनेकों जीव
मगर नहीं खोली दूकान
फेफड़ा ,गुर्दा और लीवर बेचने की //

यदि ईश्वर व्यापारी होता
खूब चलती उनकी दूकान
अगर ! वह टूरिस्ट आपरेटर होता
जीते जी स्वर्ग दिखाने का
फंडा हीट कर जाता //

अगर अफ़सोस !
ईश्वर व्यापारी नहीं है //

रविवार, 4 सितंबर 2011

मेरा मन क्यों न बहके


जब खेतों में सरसों महके
जब अमराई में कोयल चहके
जब घुघट से आँचल सरके
बोलो सजनी !
मेरा मन तब क्यों न बहके //

जब छाये पूरब में लाली
जब गाए खरतों में हरियाली
झूमे उर और कमर जब लचके
बोलो सजनी !
मेरा मन तब क्यों न बहके //

जब सुमन-पवन का हो आलिंगन
तब यौवन-ढलान पर फिसले मन
छूकर मुझे, जब तेरा स्वर अटके
बोलो सजनी !
मेरा मन तब क्यों न बहके //
]

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

मैं कांग्रेस हूँ


मेरा जन्म ...
अंग्रेजों के गोद में हुआ था
बस ...वही से सीख गया ...अंग्रेजियत //

सबसे पहले मैंने सीखा ...
फुट डालो राज करो की राजनीति
मेरे बनाये हर रास्ते में
एक तरफ खाई होती है //

मैं बखूबी जानता हूँ
गला दवाने की तरकीब
सरपट दौड़ने वाले घोड़े को
कीलें चुभाना
और ...
हासिये पे धकेलना
तो मेरी फिदरत है
हर कानून में
छेद छोड़ जाता हूँ
क्योकि .... मैं कांग्रेस हूँ //

बुधवार, 17 अगस्त 2011

मनुहार


ओ हवा ...
थोडा सा बह लो
मेरी महबूबा के लिए
उसके पसीने सुखा दो //

ओ फूल ...
थोडा सा महक जाओ
ओ दिनकर ...
थोड़ा सा छिप जाओ बादलों में
ओ पक्षियों ...
थोड़ा सा चहचहां लो ...
मेरी महबूबा के लिए

मेरी गैरहाजरी में
मेरी महबूबा को खुश रखने का
मनुहार करता हूँ ॥//



शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

सही समय...


जब ...सही समय पर चलती है रेलगाड़ी
बड़ा सकून मिलता है ....यात्रियों को

जब ... सही समय पर लौट आते है बच्चे
बड़ा सकून मिलता है ....माता-पिता को

जब सही समय पर होती है वर्षा
बड़ा सकून मिलता है ... किसानों को

आइये ...
हम सब अपने- अपने काम
सही समय पर करें ....
पुरे समाज को सकून मिलेगा //

रविवार, 7 अगस्त 2011

दिल पे मत ले यार


( आई आई टी नई दिल्ली के एक छात्र दिनेश अहलावत के रैंगिंग के कारण आत्महत्या करने के बाद )


उन्होंने
तुम्हारी चड्ढी क्या खुलबाई
तुम्हारे नितम्बों पर मुहर क्या लगाई
रोने लगे तुम ...
दिल पे मत ले यार //

हम सब नंगे आये हैं
नंगे हैं
और नंगे जायेगे //

अरे यार ...
लड़कियों को देखो
मर्दों से ज्यादा बोल्ड हैं
शौक से कहती हैं ....
बाड़ी हैं तो दिखाउंगी ही //

तुम क्या सोचते हो
रंगीन कपडे और टाई लगाकर
एक आदमी
अपने नंगई को ढक सकता है क्या ?

मेरे बारे में