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रविवार, 5 जून 2011

क्षणिकाएँ

नाव डूबी, यमुना में
दिल मेरा डूबा
तेरे अंगना में //

मोर ,मोरनी को ले भगा
देखकर मौका तगड़ा
दोनों बालिग़ थे
अब किस बात का झगडा //

इस देश को लुटा
देश के रखवालों ने
मुझको लुटा, मेरे सालों ने //

10 टिप्‍पणियां:

  1. पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ |
    आपकी सारी रचनाएं पढ़ी बहुत अच्छा लगा !
    अफ़सोस है की पहले क्यों नहीं आया आपके पोस्ट पर !
    कृपया मेरे ब्लॉग पर आयें http://madanaryancom.blogspot.com/

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  2. सालों की बुराई...पब्लिकली...सही नहीं...

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  3. वह पाण्डेय जी आपने तो कमाल ही कर दिया !मेरे ब्लॉग पर् भी आये आने के लिए यहाँ क्लिक करे - "samrat bundelkhand"

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  4. कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका

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  5. अरे --तीनो क्षणिकायें शानदार और जानदार । नाव का डूवना और मोरनी का भगाना । तीसरी क्षणिका- सर हमारे यहां मध्यप्रदेश में कहाबत है दीवाल को खाये आला और घर को खाये साला। आला बोले तो कच्ची दीवारों में छोटी अलमारी जैसा ही कुछ

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  6. Kshan bhar ko stabdh raha main,
    padh kar ye kshanikayen...'
    kash aap hamein nit din...
    aisi hi kavita se nahlaayen..
    bheeng gaya...achha laga

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