
झुकना नहीं सीखा था ,इसलिए टूट गया हूँ
लूटना नहीं सीखा था, इसलिए लुट गया हूँ //
अविश्वास की डोर से,मैं रिश्ते नहीं बाँध पाया
अपनों ने छोड़ा मुझे,मैं परायों को भी नहीं छोड़ पाया //
सबका खून एक है,मगर क्यों कोई ईमान बेच देता है
अपने चूल्हे की आग बुझा ,दुसरे पर रोटी सेक लेता है //
स्वस्थ बीज अगर बोयेगा किसान ,फल ज़रूर निकल जाएगा
इत्मीनान से बैठकर सोचो बबन ,कोई हल ज़रूर निकल जाएगा //
ji ha sir ek na ek din hal jaroor niklega...bahut achchhi kriti hai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है बब्बन जी
जवाब देंहटाएंbahut khoob baban bhai
जवाब देंहटाएंaakarshan
behtreen likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
आपकी नज्म बहुत अच्छी लगी.क्या तारीफ़ करू कुछ कहते नही बनता..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बबन जी ...क्या कहने .
जवाब देंहटाएंझुकना नहीं सीखा था ,इसलिए टूट गया हूँ
जवाब देंहटाएंलूटना नहीं सीखा था, इसलिए लुट गया हूँ //
bhut acha.
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जवाब देंहटाएंThanks for sharing!
bahut hi umda sabdon ki najuk kaliyo ko bhavnao me khilaya hai sir ji
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर क्या बात है ..
जवाब देंहटाएंझुकना नहीं सीखा था ,इसलिए टूट गया हूँ
जवाब देंहटाएंलूटना नहीं सीखा था, इसलिए लुट गया हूँ /
Kya khoo likha hai aapne
प्रिय बबन भाई,
जवाब देंहटाएंआपकी लेखन शैली विशिष्ट है। नये और पुराने को एक साथ मिलाने की कला अद्भुत है!
राधे राधे।
प्रिय बबन भाई,
जवाब देंहटाएंआपकी लेखन शैली विशिष्ट है। नये और पुराने को एक साथ मिलाने की कला अद्भुत है!
राधे राधे।
Nice poetry....sirji
जवाब देंहटाएंhttp://kunaltimesquare.blogspot.in/